आज व्यक्ति की पहचान उसके बाहरी गुणों एवं आचरण से की जाती है। जैसे व्यक्ति अच्छा है, सकारात्मक सोच वाला है, सम्यक दृष्टि वाला है या नकारात्मक सोच या मिथ्यादृष्टि वाला है। अंतरंग का विषय (गुण) को हम पकड़ नहीं सकते, क्योंकि केवली भगवान के अलावा व्यक्ति के अंदर के गुणों के बारे में कोई नहीं बता सकता। ाबाहरी आचरण और गुणों से हम व्यक्ति के बारे में निर्णय कर सकते हैं और उसी के अनुसार हम उसकी संगति करते है।
उदारहण के तौर पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को आज की पीढ़ी ने देखा नहीं, लेकिन उनके बाहरी गुणों के कारण आज भी उनके व्यक्तित्व के बारे में चर्चा करते हैं। महात्मा गांधी का आचरण एवं बाहरी गुण भगवान महावीर के उपदेशों के अनुरूप ही थे। वे भी अहिंसा के पुजारी और परिग्रह से दूर थे।
हम यहां सम्यकदर्शन की चर्चा कर रहे हैं। सम्यग्दर्शन जिस मनुष्य को होता है, उस मनुष्य को सम्यक दृष्टि कहते हैं। अंतरंग में जब कषाय, मिथ्यात्व आदि का नाश हो जाता है तब सम्यक दर्शन होता है, लेकिन आंतरिक रूप से व्यक्ति की पहचान हम नहीं कर सकते। हम उसके बाहरी गुणों एवं आचरण से ही उसके सम्यक दृष्टि होने का अनुमान कर सकते हैं। शास्त्रों में सम्यक दर्शन के आठ गुण (अंग) बताए हैं, जिनसे हम सम्यक दृष्टि की बाहरी पहचान कर सकते हैं। उनमें से पहला गुण निःशंकित अंग है।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी में रत्नकरण्ड श्रावकाचार में सम्यग्दर्शन के आठ गुणों में से पहले निःशंकित अंग का स्वरूप बताते हुए कहा है कि
इदमेवे दृशमेव तत्त्वं नान्यन्त्र चान्यथा।
इत्यकम्पायसाम्भोवत सन्मार्गेऽसंशया रुचिः ॥11।।
अर्थात- जीवादि सात तत्व व देव, शास्त्र, गुरू का स्वरूप यही है, ऐसा ही है, अन्य नहीं है और अन्य प्रकार भी नहीं है। इस तरह देव, शास्त्र, गुरु के प्रवाह रूप समीचीन मोक्षमार्ग के विषय में लोहे की तलवार आदि की धार पर चढ़े हुए लोहे के पानी के समान अटल श्रद्धा संशय रहित निःशंकित है।
तात्पर्य है कि जिस व्यक्ति में इस अंग या गुण का समावेश है वह सपने में भी जिनेन्द्र भगवान के मार्ग पर शंका नहीं कर सकता है। वह देव, शास्त्र एवं गुरू के प्रति बिना किसी शंका के अटूट श्रद्धा रखता है। अगर वह जिनेंद्र भगवान के किसी उपदेश को समझ नहीं पाता है तो उसका भाव यही होता है कि वह अपने कर्मों के उदय के कारण जिनेन्द्र भगवान की वाणी का बोध नहीं कर पा रहा है। जिनेन्द्र भगवान के प्रति ऐसी श्रद्धा ही व्यक्ति को सुख प्रदान करती है। सार यही है कि हमें भगवान जिनेंद्र के उपदेशों पर किसी तरह का संदेह नहीं होना चाहिए, वे सर्वमान्य हैं और हर परिस्थिति में प्रासंगिक हैं।
अनंत सागर
श्रावकाचार (दसवां दिन)
सोमवार , 10 जनवरी 2022, बांसवाड़ा
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