भक्तामर स्तोत्र
काव्य – 18
शत्रु सेना स्तम्भक
नित्योदयं दलित-मोह-महान्धकारम्।
गम्यं न राहु-वदनस्य न वारिदानाम् ।
विभ्राजते तव मुखाब्ज-मनल्प-कांति,
विद्योत् यज्-जग –दपूर्व शशाङ्क -विम्बम् ॥18॥
अन्वयार्थ : नित्योदयम् – सदा काल उदित रहने वाला । दलितमोहमहान्धकारम् –मोहरुप महान्धकार का विनाशक । अनल्पकान्ति – महाकान्तिशाली । तव – आपका । मुखाब्जम् – मुख कमल । न – नहीं । राहुवदनस्य – राहु मुख के (केतु) । गम्यम् – गम्य हैं । न वारिदानाम् – न मेघों के । गम्यम् – गम्य है । जगत् – जगत् को । विद्योतयत्- प्रकाशित करत हुआ । अपूर्व शशाङ्क बिम्बम् – अपूर्व चन्द्र बिम्ब । विभ्राजते – सुशोभित हो रहा है ।
अर्थ- हमेशा उदित रहने वाला, मोहरूपी अंधकार को नष्ट करने वाला जिसे न तो राहु ग्रस सकता है,न ही मेघ आच्छादित कर सकते हैं । अत्यधिक कांतिमान ,जगत को प्रकाशित करने वाला आपका मुखकमल रुप अपूर्व चन्द्रमण्डल शोभित होता है ।
मंत्र जाप – ऊँ नमो भगवते जय विजय मोहय मोहय स्तम्भय स्तम्भय स्वाहा ।
ऊँ ह्रीं शास्त्र ज्ञान बोधनाय परमर्द्धि प्राप्ति जयंकराय ह्रां ह्रीं क्रौं श्रीं नम: ।
ऊँ नमो भगवते शत्रु शैन्य निवारणाय यं यं यं क्षुर विध्वंसनाय नम: क्लीं ह्रीं नम: ।
ऊँ ह्रीं परमर्द्धये नम: ।
ऋद्धि जाप – ऊँ ह्रीं अर्हं णमो विउयणयट्ठि पत्ताणं झ्रौं झ्रौं नमः स्वाहा: ?
ऊँ ह्रीं अर्हं विवुलरिद्धिपत्ताणं झ्रौं झ्रौं नमः / स्वाहा ।
अर्घ्य- ऊँ ह्रीं चन्द्रवत् सर्वलोकोद्योतनकराय क्लीं महाबीजाक्षर सहिताय हृदयस्थिताय श्रीवृषभनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
दीप मंत्र – ऊँ ह्रीं चन्द्रवत् सर्वलोकोद्योतनकराय क्लीं महाबीजाक्षर सहिताय हृदयस्थिताय श्रीवृषभनाथ जिनेन्द्राय दीपं समर्पयामि स्वाहा।
जाप विधि – लाल कपडे,लाल माला,लाल आसन बैठकर कर प्रतिदिन 1000 बार काव्य,ऋद्धि मंत्र , मंत्र जाप दशांग धूप के साथ करना चाहिए ।
कहानी 18
अभ्यास से बना बुद्धिमान
भक्तामर स्त्रोत में इतनी ऊर्जा है कि एक अज्ञानी भी बुद्धिमान और ज्ञानी बन जाता है। कलिंग देश की बरबर नगरी में राजा चंद्रकीर्ति का राज्य था। मंत्री सुमतिचंद्र का निधन होने पर उन्होंने उसके पुत्र भद्रकुमार को मंत्री पद सौंपने के लिए बुलाया। दरबार में जाने से पहले भद्रकुमार की मां ने कहा कि वह दरबार में सबका आदर करे। उधर भद्रकुमार संशय में था। 12 वर्ष तो उसने खेलकूद में बिताए थे। पढऩे-लिखने में उसकी रुचि न थी लेकिन अगले चार वर्ष उसने जानवरों की देखभाल में बिताए थे। दरबार का वातावरण उसे समझ न आया। उसने राजा से कह दिया कि वह मंत्री पद के योग्य नहीं है। उसे राजदरबार में अन्य कोई कार्य दे दिया जाए। इस पर राजा ने कहा कि मूर्खों का उसके दरबार में कोई स्थान नहीं है। फटकार सुनकर भद्रकुमार कुछ कर दिखाने का इरादा कर वहां से चला आया। भटकते हुए उसे एक वीतरागी दिगंबर मुनि मिले। उसने मुनि श्री को अपनी पीड़ा बताई। इस पर मुनि श्री ने उसे भक्तामर के 18वें श्लोक का पाठ पूरे विधि-विधान से करने को कहा। वह तीन दिन तक भक्तामर के इस श्लोक का पाठ करता रहा। तभी जिन शासन की देवी व्रजा प्रकट हुईं और उन्होंने उसे विद्वान बनने का आशीर्वाद दिया। वह राजदरबार में पहुंचा तो सभी उसके ज्ञान से चकित रह गए। भद्रकुमार ने उन्हें बताया कि भक्तामर के 18वें श्लोक का पाठ करने से उसे ज्ञान प्राप्त हुआ है। यह सुनकर राजा और सभी दरबारी जिनभक्त बन गए।
शिक्षा : इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि भक्तामर के 18वें श्लोक का पाठ पूरी भक्ति से करने से मूर्ख और अज्ञानी भी ज्ञानी और विद्वान बन जाता है।
चित्र विवरण- चन्द्रमा राहू एवं बादलों से प्रभावहीन हो रहा है । भगवान ऋषभदेव का मुखचन्द्र अक्षय प्रकाश युक्त है । भगवान की धवल कीर्ति का बखान करता हुआ धवल वर्ण गौ- वत्स प्रस्तुत ।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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