भक्तामर स्तोत्र
काव्य – 2
शत्रु तथा शिरपीडा नाशक
यःसंस्तुतः सकल-वांग्मय-तत्त्वबोधा-
दुद्भूत-बुद्धि-पटुभिः सुरलोक-नाथै ।
स्तोत्रैर्जगत्त्रितय-चित्त-हरै-रुदारैः,
स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ॥2॥
अन्वयार्थ : सकल –समस्त । वाङ्मय – द्वादशांग रूप जिनवाणी के । तत्व बोधात् – परम रहस्य के परिज्ञान से । उद्भभूत – उत्पन्न हुई । बुद्धि पटुभि: – बुद्धि की कुशलता वाले ।
सुरलोकनाथै: – देवलोक के स्वामी इन्द्रों के द्वारा । जगत्-त्रितय – तीन जगत के । चित्तहरै: – चित्त को हरण करने वाले । उदारै: – महान् । स्तोत्रै: – स्तोत्रों से । य: – जो ऋषभदेव ।
संस्तुत: – सम्यक् स्तवन किये गये (ऎसे) । तम् – उन । प्रथमम् – प्रथम । जिनेन्द्रम् – जिनेन्द्र तीर्थंकर का । किल – निश्चय से । अहम्- मैं मानतुंग । अपि – भी । स्तोष्ये – स्तवन करुगाँ ।
अर्थ- सम्पूर्ण श्रुतज्ञान से उत्पन्न हुई बुद्धि की कुशलता से इन्द्रों के द्वरा तीन लोक के मन को हरने वाले,गंभीर स्तोत्रों के द्वारा जिनकी स्तुति की गई है उन आदिनाथ जिनेन्द्र की निश्चय ही मैं (मांगतुंग) भी स्तुति करूँगा ।
मंत्र जाप – ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूँ नम: । सकलार्थ सिद्धिणम् ।
ऋद्धि जाप – ऊँ ह्रीं अर्हं णमो ओही जिणाणं झ्रौं झ्रौं नम: स्वाहा ।
अर्घ्य – ऊँ ह्रीं नानामरसंस्तुताय सकलरोगहराय क्लीं महाबीजाक्षरसहिता हृदयस्थिताय श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
दीप मंत्र – ऊँ ह्रीं नानामरसंस्तुताय सकलरोगहराय क्लीं महाबीजाक्षरसहिता हृदयस्थिताय श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय दीपं समर्पयामि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जाप विधि – काले वस्त्र पहनकर काली माला देकर ,काले आसन पर पूर्व दिक्षा की ओर मुख करके दंडासन मांडकर इअक्कीस या तीस दिन तक प्रतिदिन एक सौ आठ बार अथवा सात दिन तक प्रतिदिन एक हजार बार ऋद्धि मंत्र तथा मंत्र का स्मरण करें ।
कहानी –
संकट में चमत्कार
संकट एक ऐसी चीज है, जो बिना बुलाए जीवन में कभी भी आन पड़ती है। आचार्य मानतुंग स्वामी पर भी ऐसा ही संकट आ गया था लेकिन भगवान आदिनाथ के प्रति अटूट श्रद्धा के चलते उन्हें उस संकट से मुक्ति मिल गई थी। मध्यकाल में सुदत्त नाम का एक चोर था, जो चोर्य कला में इतना प्रवीण था कि किसी के भी हाथ नहीं आता था। लेकिन कहते हैं कि कोई चोर कितना भी चतुर हो एक न एक दिन पकड़ा ही जाता है। चोर सुदत्त को भी राजमहल में रंगे हाथों चोरी करते हुए पकड़ लिया गया। राजा ने उससे पूछा कि तुम इतने बड़े चोर हो लेकिन फिर भी तुमने फटे वस्त्र पहन रखे हैं। इस पर झूठ बोलने में माहिर चोर ने कहा कि वह सेठ हेमदत्त के पास रहता है। राजदरबार में उपस्थित सेठ ने कहा कि उसने तो चोर को पहली बार देखा है। इस पर चोर ने रोकर कहा कि उसका चोरी का सारा धन सेठ के पास है। राजा ने सेठ को हाथ-पैर बांधकर कुएं में डालने की सजा सुना दी। अंधेरे कुएं में पड़े सेठ ने भगवान आदिनाथ का ध्यान नहीं छोड़ा और भक्तामर स्तोत्र के प्रथम युगल श्लोक का पाठ पूरी भक्ति से किया। पाठ पूरा होते ही सेठ के बंधन खुल गए और उसे शासन देवी विजया के दर्शन हुए। इस चमत्कार की खबर राजा तक पहुंची। राजा समझ गया कि सेठ निर्दोष है और उसने सेठ से माफी मांगी। राजा और प्रजाजनों ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया।
शिक्षा : इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि जो भी भक्तामर के प्रथम युगल श्लोक का पाठ पूरी भक्ति से करता है, उसके जीवन से सारे संकट दूर हो जाते हैं।
चित्र विवरण- विशेष बुद्धिमान देवों के द्वरा वन्दित,जिनेन्द्र देव का स्तवन,स्वयं को अल्पबुद्धि कहने वाले मानतुंगाचार्य करने का प्रायास कर रहे हैं ।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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