मुनि पूज्य सागर की डायरी से
मौन साधना का 45वां दिन। भारतीय संस्कृति में इंसान की पहचान उसके आचरण से ही होती है। आचरण के बिना धन, वैभव,सम्मान,पद ,रूप जाति आदि सब बेकार माने जाते हैं। मृत्यु के बाद इंसान के शव को श्मशान में ले जाते हैं तब भी वहां पर लोग आपस में उसके धन आदि की बात नहीं करते हैं बल्कि उसके द्वारा किए कार्य,आचरण आदि की चर्चा करते है। किसी समाज, परिवार, इंसान के अस्तित्व को समाप्त करना है तो सबसे पहले उसके आचरण को दूषित करना प्रारंभ कर दें। धीरे- धीरे इंसान खुद ही अपने हाथों से अपने समाज,परिवार और अपना अस्तित्व समाप्त कर लेगा।
इंसान का दूषित आचरण पाश्चात्य संस्कृति की तरह के खान-पान,उठना-बैठना,पहनावा,भाषा आदि से हो रहा है। आज हमारी आदत अधिकांश कार्य पाश्चात्य संस्कृति के अनुसार करने की हो गई है, इसलिए हमारी प्राचीन परम्परा, लज्जा, शर्म समाप्त होती जा रही है। न बड़ों के प्रति वह आदर सम्मान रहा और न ही उसी भावनाओं को समझने का भाव रहा है। आज स्थिति तो यह हो रही है कि हमारे बच्चे हमारी संस्कृति और संस्कारों के बारे में ही नहीं जानते हैं तो फिर उसे जीवन में उतारना बहुत मुश्किल है।
चिंतन का विषय तो यह है कि हम हमारी नई पीढ़ी को कैसे अपनी संस्कृति से परिचित करवाएं? उसके लिए हमारी क्या तैयारी है? अगर हम आज भी तैयार नहीं हुए तो आने वाले समय में हमारे परिवार,समाज और हमारे स्वयं का कोई अस्तित्व इस धरती पर नहीं रहेगा। आचरण की सुरक्षा में सबसे पहला कदम हमें अपनी भोजनशाला को दूषित होने से बचाना होगा। कहा भी है- जैसा पानी वैसी वाणी, जैसा खावे अन्न, वैसी होवे मन।
शनिवार, 18 सितम्बर, 2021 भीलूड़ा
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