तीसरे अणुव्रत अचौर्याणुव्रत में वारिषेण की कहानी का वर्णन स्थितिकरण अंग में श्रावकाचार की श्रृंखला के तहत 24 जनवरी 2021 को 24 वें दिन में कर आये हैं।
आज हम बात करेंगे चौथे ब्रह्मचर्याणुव्रत में प्रसिद्ध नीली नाम की वणिकपुत्री की।
लाटदेश के भृगुकच्छ नगर में राजा वसुपाल रहता था। वहीं एक जिनदत्त नाम का सेठ रहता था। उसकी स्त्री का नाम जिनदत्ता था। उनके एक नीली नाम की पुत्री थी, जो अत्यन्त रूपवती थी। उसी नगर में एक समुद्रदत्त नाम का सेठ रहता था, उसकी स्त्री का नाम सागरदत्ता था और उन दोनों के एक सागरदत्त नाम का पुत्र था। एक बार महापूजा के अवसर पर मन्दिर में कायोत्सर्ग से खड़ी हुई तथा समस्त आभूषणों से सुन्दर नीली को देखकर सागरदत्त ने कहा कि क्या यह भी कोई देवी है ? यह सुनकर उसके मित्र प्रियदत्त ने कहा कि यह जिनदत्त सेठ की पुत्री नीली है। नीली का रूप देखने से सागरदत्त उसमें अत्यन्त आसक्त हो गया और उससे विवाह की चिन्ता में दुर्बल हो गया। समुद्रदत्त ने यह सुनकर उससे कहा कि हे पुत्र! जैन को छोड़कर अन्य किसी से जिनदत इस पुत्री का विवाह नहीं करेगा।
तदनन्तर वे दोनों पिता पुत्र कपट से जैन हो गये और नीली को विवाह लिया। विवाह के पश्चात् वे फिर बुद्धभक्त हो गये। उन्होंने नीली का पिता के घर जाना भी बन्द कर दिया। इस प्रकार धोखा होने पर जिनदत्त ने यह कहकर संतोष कर लिया कि यह पुत्री मेरे हुई ही नहीं है अथवा मर गई है। नीली अपने पति को प्रिय थी, अतः वह ससुराल में, जिनधर्म का पालन करती हुई एक भिन्न घर में रहने लगी।
समुद्रदत्त ने यह विचार कर कि बौद्ध साधुओं के दर्शन से, संसर्ग से, उनके वचन, धर्म और देव का नाम सुनने से काल पाकर यह बुद्ध की भक्त हो जायेगी। एक दिन समुद्रदत्त ने कहा कि नीली बेटी ? बौद्ध साधु बहुत ज्ञानी होते हैं, उन्हें देने के लिये हमें भोजन बनाकर दो। तदनन्तर नीली ने बौद्ध साधुओं को निमन्त्रित कर बुलाया और उनकी एक-एक प्राणहिता-पनहिया जूती को अच्छी तरह पीसकर तथा मसालों से सुसंस्कृत कर उन्हें खाने के लिए दे दिया। वे बौद्ध साधु भोजन कर जब जाने लगे तो उन्होंने पूछा कि हमारी जूतियाँ कहाँ है ? नीली ने कहा कि आप ही अपने ज्ञान से जानिये, जहाँ वे स्थित हैं। यदि ज्ञान नहीं है तो वमन कीजिये, आपकी जूतियाँ आपके ही पेट में स्थित हैं। इस प्रकार वमन किये जाने पर उनमें जूतियों के टुकड़े दिखाई दिये। इस घटना से नीली के ससुर पक्ष के लोग बहुत रुष्ट हो गये।
तदनन्तर सागरदत्त की बहन ने क्रोधवश उसे परपुरुष के संसर्ग का झूठा दोष लगाया। जब इस दोष की प्रसिद्धि सब ओर फैल गई, तब नीली भगवान् जिनेन्द्र के आगे संन्यास लेकर कायोत्सर्ग से खड़ी हो गई और उसने नियम ले लिया कि इस दोष से पार होने पर ही मेरी भोजन आदि में प्रवृत्ति होगी, अन्य प्रकार नहीं। तदनन्तर क्षोभ को प्राप्त हुई नगरदेवी ने आकर रात्रि में उससे कहा कि हे महासती इस तरह प्राणत्याग मत करो। मैं राजा को तथा नगर के प्रधान पुरुषों को स्वप्न देती हूँ कि नगर के सब प्रधान द्वार कीलित हो गये हैं। वे महापतिव्रता स्त्री के बाँये चरण के स्पर्श से खुलेंगे। वे प्रधान द्वार प्रातः काल आपके पैर का स्पर्श कर खुलेंगे, ऐसा कहकर वह नगरदेवी राजा आदि को वैसा स्वप्न दिखाकर तथा नगर के प्रधान द्वारों को बन्दकर बैठ गई। प्रातःकाल नगर के प्रधान द्वारों को कीलित देखकर राजा आदि ने पूर्वोक्त स्वप्न का स्मरण कर नगर की सब स्त्रियों के पैरों से द्वारों की ताड़ना कराई। परन्तु किसी भी स्त्री के द्वारा एक भी प्रधान द्वार नहीं खुला। नीली को भी वहाँ उठाकर ले जाया गया। उसके चरणों के स्पर्श से सभी प्रधान द्वार खुल गये। इस प्रकार नीली निर्दोष घोषित हुई और राजा आदि के द्वारा सम्मान को प्राप्त हुई।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 72 वां दिन)
रविवार, 13 मार्च 2022, घाटोल
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