बुरे मनुष्य की संगति से बुराई का अनुभव होगा, धीरे-धीरे बुरी बातों का आदान-प्रदान होगा, इसलिए जो यह कहते हैं कि मैं शराब नहीं पीता, केवल अपने काम से उसके साथ रहता हूं। उसकी जिंदगी वह जाने मुझे उससे क्या लेना देना। यह कहने वाले ध्यान रखना उसका तो कुछ जाने वाला नहीं है, पर तुम्हारे आचरण, विचार, क्रिया में मलिनता जरूर आ जाएगी । सफेद कपड़ा अपना स्वभाव नही छोड़ता। वह सफेद ही रहेगा, पर जब वह सफेद कपड़ा किसी रंगीन के संपर्क में आता है तो उसका रंग बदलना निश्चित है। यह बात अलग है कि उस सफेद कपड़े से रंग अनेक विधि के माध्यम से उतारा जा सकता है, पर कुछ ना कुछ अंश तो रहेगा और कुछ समय के लिए तो वह सफेद कपड़ा रंगीन हुआ ही था, यह तो मानना ही होगा। कुछ ऐसा ही है कि धर्मात्मा या सम्यग्दृष्टि जीव के साथ। वह मिथ्यादृष्टि(नास्तिक) मनुष्य के संपर्क में आता है तो अंदर से चाहे उसके विचार कुछ भी हो पर वह बाहर से उसके साथ है तो भी उसे दोष लगेगा ही। इसलिए कभी भी किसी भी स्थिति-लालच में मिथ्यादृष्टि या बुरे मनुष्य के साथ नहीं रहना चाहिए ।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में कहा है …
भयाशास्नेहलोभाच्च, कुदेवागमलिङ्गिनाम् ।
प्रणामं विनयं चैव, न कुर्युः शुद्धदृष्टयः ॥30॥
अर्थात – शुद्ध सम्यग्दृष्टि जीव भय, आशा, प्रेम और लोभ से कुदेव, कुशास्त्र और कुगुरुओं को विनय और प्रणाम को
निश्चित ही न करे। राजा आदि से उत्पन्न हुए आतंक को भय कहते हैं, आगामी पदार्थ की इच्छा करना आशा है, मित्रों के अनुराग को स्नेह कहते हैं और वर्तमान काल में धन प्राप्ति की जो गृद्धता है उसे लोभ कहते हैं।
कितने ही लोग अन्तरंग में कुदेवादि की श्रद्धा न होने पर भी राजादिक के भय अथवा नमस्कार के बिना ये अनिष्ट कर देंगे, इस भय से आगामी काल में प्राप्त होने वाले धन की आशा से, मित्रादिक के अनुराग से और लोभ से उनको प्रणाम या उनकी विनय करने लगते हैं तथा इसे सम्यग्दर्शन का अतिचार जानकर संतोष कर लेते हैं कि हमने सम्यक्त्व को नष्ट तो नहीं किया है मात्र अतिचार लगाया है, ऐसे जीवों को समन्तभद्र स्वामी सचेत करते हुए कहते हैं कि जो अपने सम्यग्दर्शन को शुद्ध रखना चाहते हैं उन्हें भयादिक कारणों से भी कुदेवादिक को नमस्कार या उनकी विनय नहीं करना चाहिए, विपत्ति के समय दृढता धारण करना ही सम्यग दर्शन की विशेषता है। सम्यग्दृष्टि जीव कुदेवादिक के सम्पर्क से दूर रहता है। सार है कि किसी भी लालच या लोभ के वश अथवा विपत्ति के समय भी हमें सम्यगदर्शन के साथ रहना चाहिए।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 36 वां दिन)
शनिवार, 5 फरवरी 2022, बांसवाड़ा
Give a Reply