19
Jun
चौथी ढाल
ज्ञान की महिमा
धन समाज गज बाज, राज तो काज न आवै।
ज्ञान आप को रूप भये, फिर अचल रहावै।।
तास ज्ञान को कारन, स्व-पर विवेक बखानौ।
कोटि उपाय बनाय, भव्य ताको उर आनौ।।7।।
अर्थ – धन-सम्पत्ति, कुटुम्ब-समाज, हाथी-घोड़े, राज्य-वैभव आदि कोई भी वस्तु आत्मा की उन्नति में सहायक सिद्ध नहीं होते हैं, कुछ दिन साथ रहकर अवश्य नष्ट हो जाते हैं किन्तु सम्यक्ज्ञान आत्मा का वास्तविक स्वरूप है, वह एक बार प्राप्त हो जाए तो अक्षय हो जाता है। आत्मा और पर-वस्तुओं का भेद विज्ञान ही उस सम्यक्ज्ञान का कारण है, इसलिए प्रत्येक आत्महितैषी भव्यजीव को सतत प्रयास एवं करोड़ों उपाय करके भी उस सम्यक्ज्ञान को अपने हृदय में धारण करना चाहिए।
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