20
May
दूसरी ढाल
कुगुरु- कुदेव का स्वरूप
धारैं कुलिंग लहि महत-भाव, ते कुगुरु जन्म जल उपलनाव।
जे रागद्वेष मल करि मलीन, वनिता गदादि जुत चिन्ह चीन।।10।।
अर्थ – जो, बड़प्पन पाकर खोटे भेषों को धारण करते हैं,वे कुगुरु कहलाते हैं । वे कुगुरु संसार रुपी समुद्र में पत्थर की नौका के समान हैं । जो रागद्वेष रुपी मैल से मैले है,स्त्री गदा आदि चिन्हों से जो पहिचाने जाते हैं ,वे कुदेव कहलाते हैं।
विशेष – यहाँ इस परिभाषा के अनुसार चव्रेश्वरी, पद्मावती आदि शासन देवियाँ तथा क्षेत्रपाल, धरणेन्द्र आदि शासन देवों को कुदेव में ग्रहण नहीं करना, क्योंकि तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ के अनुसार चौबीसों तीर्थंकर भगवान के शासन देव-देवी नियम से सम्यग्दृष्टि होते हैं, उनकी पूजा-अर्चना आगम सम्मत मानी गई है।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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