दूसरी ढाल
मिथ्याचारित्र और संसार के त्याग का उपदेश
ते सब मिथ्याचारित्र त्याग, अब आतम के हित पन्थ लाग।
जगजाल भ्रमण को देहु त्याग, अब ‘दौलत’ निज आतम सुपाग।।15।
अर्थ –उन सब मिथ्याचारित्रों का त्याग कर अपनी आत्मा की भलाई के मार्ग में लग जाना चाहिए । हे दौलतराम ! संसार में भ्रमण करने का त्याग कर अपनी आत्मा में अच्छी तरह लीन जो जाओ।
विशेषार्थ – मिथ्याचारित्र आदि का त्याग ही संसार चक्र के भ्रमण की परिसमाप्ति है अत: इसे छोड़कर आत्म कल्याण के मार्ग में लगो, यही उपदेश का भाव है। इस ढाल में चतुर्गति भ्रमण व दु:खों का निदान, सात तत्त्वों का उल्टा श्रद्धान, कुगुरु, कुदेव, कुधर्म का स्वरूप, गृहीत-अगृहीत के भेद से मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, मिथ्याचारित्र का वर्णन विशद् रूप में किया गया है। अन्त में संसार के दन्द-फन्द छोड़कर आत्मस्वरूप में लवलीन होने की शिक्षा दी गई है।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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