04
Jul
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छहढाला
पांचवी ढाल
एकत्व भावना
शुभ अशुभ करम-फल जेते, भोगै जिय एकहि ते-ते। सुत दारा होय न सीरी, सब स्वारथ के हैं भीरी ॥6॥
अर्थ- पुण्य और पाप कर्मों के जितने फल हैं उनको यह जीव अकेला ही भोगता है; पुत्र, स्त्री, कोई साथी नहीं होते, सब मतलब के गरजी हैं, ऐसा विचार करना एकत्व भावना है।
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