पहली ढाल
नरक में सेमर वृक्ष, सर्दी और गर्मी के दु:ख
सेमर-तरु-जुत दल-असिपत्र-असि ज्यों देह विदारैं तत्र।
मेरु समान लोह गलि जाय, ऐसी शीत उष्णता थाय।।11।।
अर्थ – नरक की भूमि में ऐसे सेमर वृक्ष हैं, जिनमें तलवार के समान तीक्ष्ण पत्ते लगे हैं, जो अपनी तीक्ष्ण धार से नारकी के शरीर को वहीं पर विदीर्ण कर देते हैं-टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं। वहाँ इतनी भीषण ठण्ड अथवा गर्मी होती है कि सुमेरु पर्वत के समान विराट लोहे का गोला भी गल जाता है।
विशेषार्थ – मेरुपर्वत जम्बूद्वीप के विदेहक्षेत्र में अवस्थित है। इसकी नींव एक हजार योजन, जमीन से ऊँचाई ९९ हजार योजन, मोटाई दश हजार योजन और चूलिका की ऊँचाई चालीस योजन प्रमाण है। छंद में जो ‘गलि’ शब्द आया है, उसके दो अर्थ हैं ‘गलना’ और ‘पिघलना’। जिस प्रकार गर्मी में मोम पिघल जाता है, उसी प्रकार सुमेरु पर्वत के बराबर लोहे का गोला गर्म बिल में फैका जाए, तो वह बीच में ही पिघलने लगता है तथा जिस प्रकार ठण्ड और बरसात में नमक गल जाता है, उसी प्रकार सुमेरु के बराबर लोहे का गोला ठण्डे बिल में पेंâका जाए, तो बीच में ही गलने लगता है। पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे तथा पाँचवें नरक के दूसरे-तीसरे भाग में गर्मी है और पाँचवें नरक के प्रथम-द्वितीय-तृतीय भाग में सर्दी है एवं छठवें तथा सातवें नरक में भयंकर सर्दी है।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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