पहली ढाल
नरक में अन्य नारकियों व असुरकुमारों द्वारा उदीरित और प्यास के दु:ख
तिल-तिल करैं देह के खण्ड, असुर भिड़ावैं दुष्ट प्रचण्ड।
सिन्धु-नीरतैं प्यास न जाय, तो पण एक न बूंद लहाय।।12।।
अर्थ – नारकी एक-दूसरे के शरीर के तिल के बराबर छोटे-छोटे टुकड़े कर देते हैं। दुष्ट प्रकृति के असुरकुमार जाति के देव वहाँ जाकर उन नारकियों को आपस में लड़ा देते हैं, जिससे वहाँ आपस में हमेशा कलह और द्वेष का वातावरण बना रहता है। नरक में नारकी को इतने जोर की प्यास लगती है कि वह यदि सारे समुद्र का पानी भी पी जावे, तो भी प्यास नहीं बुझ सकती, फिर भी उन्हें पानी की एक बूँद तक पीने को नहीं मिलती है।
विशेषार्थ – भवनवासी देवों के एक कुल का नाम असुर है, इन असुर कुमार देवों में अम्बाबरीष नामक देव तीसरे नरकपर्यन्त जाकर नारकियों को स्वयं भी दु:ख देते हैं तथा आपस में लड़ाते हैं और उनका दु:ख देखकर प्रसन्न होते हैं।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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