पहली ढाल
मनुष्यगति में गर्भवास और प्रसवजन्य दु:ख
जननी-उदर बस्यो नव मास, अंग-सकुचतैं पाई त्रास।
निकसत जे दु:ख पाये घोर, तिनको कहत न आवै ओर।।14।।
अर्थ – यह जीव मनुष्यगति में माता के गर्भ में नौ मास तक रहा, जहाँ शरीर के सिकुड़े रहने से कष्ट पाया। माता के गर्भ से बाहर निकलते समय जो भयानक कष्ट इस जीव ने पाया है, वह वर्णनातीत है।
विशेषार्थ – माता के रज और पिता के वीर्य के आधार से शरीर की रचना करने वाला यह जीव दशरात्रि तक कललरूप पर्याय में, दशरात्रि तक कलुषीकृत पर्याय में और दशरात्रि तक स्थिरीभूत पर्याय में रहता है। दूसरे मास में बुदबुद, तीसरे मास में घनभूत, चौथे में मांसपेशी, पाँचवें में पाँचपुलक, छठे में आँगोपांग और चर्म तथा सातवें में रोम एवं नखों की उत्पत्ति होती है। आठवें मास में स्पन्दन क्रिया और नौवें या दसवें मास में निर्गमन होता है।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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