16
Apr
पहली ढाल
तिर्यंचगति में दु:खों की अधिकता और नरकगति की प्राप्ति का कारण
वध-बन्धन आदि दु:ख घने, कोटि जीभतैं जात न भने।
अति संक्लेश-भावतैं मर्यो, घोर श्वभ्र-सागर में पर्यो।।9।।
अर्थ – तिर्यंचगति में इस जीव को मारे जाने, बाँधे जाने आदि के अनेक दु:ख सहन करने पड़े जिनका वर्णन करोड़ों जिह्वा से भी नहीं किया जा सकता है। इस दु:खमय दशा में वह जीव बहुत ही संक्लेश परिणामों से मृत्यु को प्राप्त हुआ, उसके फलस्वरूप भयानक नरकगतिरूप समुद्र में जा गिरा।
विशेषार्थ – श्वभ्र नाम नरक का है, वहाँ जन्म लेते ही अनिर्वचनीय दु:ख भोगने पड़ते हैं तथा वहाँ अकाल मरण नहीं होता।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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