तीसरी ढाल
वात्सल्य और प्रभावना अंग और मदों का वर्णन
धर्मीसों गौ-बच्छ-प्रीतिसम, कर जिन-धर्म दिपावै।
इन गुणतैं विपरीत दोष वसु, तिनकों सतत खिपावै।।
पिता भूप वा मातुल नृप जो, होय न तो मद ठानै।
मद न रूप को, मद न ज्ञान को, धन बल को मद भानै।।13 ।।
अर्थ – 7. जैसे-गाय अपने बछ़ड़े से नि:स्वार्थ प्रीति करती है, वैसे ही साधर्र्मी-बंधुओं से प्रीति करना, सो वात्सल्य अंग है। इससे द्वेष-कलुषता आदि अपने-आप समाप्त हो जाते हैं। 8. अज्ञानरूपी अंधकार को दूर करने के लिए मंदिर आदि का निर्माण, जैन साहित्य का प्रसार आदि जैसे बने जैनधर्म की उन्नति या प्रचार अथवा प्रभावना करना प्रभावना अंग है। इस प्रकार सम्यक्त्व के ये 8 अंग या गुण हैं। इन गुणों से विपरीत 8 आचरण दोष हैं, जिनसे सदा बचना चाहिए। वे 8 दोष हैं-शंका, आकांक्षा, विचिकित्सा, मूढ़दृष्टि, अनुपगूहन, अस्थितिकरण, अवात्सल्य और अप्रभावना।
आठ मद: 1.पिता के राजा होने का घमण्ड करना कुलमद है । 2.मामा आदि के राजा होने का घमण्ड करना जाति मद है । 3.शरीर की सुंदरता का मान करना रूपमद है । 4.अपने ज्ञान का अहंकार करना ज्ञान मद है । 5.अपनी धन-दौलत का गर्व करना धनमद हैं । 6.अपनी ताकत का अभिमान करना बलमद है । मद आठ होते है इस छन्द में 6 मद का वर्णन है और आगे के छन्द में दो मदों का वर्णन करेंगे ।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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