तीसरी ढाल
सम्यक्त्व के बिना ज्ञान और चारित्र सम्यक् नहीं हैं और अंतिम उपदेश
मोक्षमहल की परथम सीढ़ी, या बिन ज्ञान-चरित्रा।
सम्यव्ता न लहै सो दर्शन, धारो भव्य पवित्रा।।
‘दौल’ समझ सुन चेत सयाने, काल वृथा मत खोवै।
यह नरभव फिर मिलन कठिन है, जो सम्यक् नहिं होवै।।17।।
अर्थ – सम्यक्दर्शन ही मोक्ष-महल की प्रथम सीढ़ी है। बिना पहले इस पर आए मोक्षरूपी महल में प्रवेश असंभव है। इसके बिना ज्ञान और चारित्र मिथ्या बने रहते हैं, वे सम्यक् माने ही नहीं जाते हैं इसलिए हे आत्महितैषी भव्य! ऐसे पवित्र सम्यग्दर्शन को धारण करो। कवि स्वयं को सम्बोधन कर कहते हैं हे दौलतराम! तू समझ, सुन, फिर सचेत हो जा। तू विवेकी है, इसलिए समय व्यर्थ नष्ट मत कर। समझ ले कि यदि इस पर्याय में सम्यग्दर्शन तुझे प्राप्त नहीं हुआ, तो तेरा मनुष्य जन्म वृथा गया पुन: यह मनुष्य पर्याय मिलना बहुत कठिन है।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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