30
May
तीसरी ढाल
मध्यम, जघन्य, अन्तरात्मा और सकल परमात्मा का स्वरूप
मध्यम अन्तर आतम हैं जे, देशव्रती अनगारी।
जघन कहे अविरत – समदृष्टी, तीनों शिवमगचारी॥
सकल निकल परमातम द्वैविध, तिनमें घाति निवारी।
श्री अरहन्त सकल परमातम, लोकालोक-निहारी॥5।।
अर्थ- देशव्रतों को पालने वाले श्रावक और महाव्रतों को पालने वाले छ्ठे गुणस्थानवर्ति मुनि मध्यम अन्तरात्मा कहलाते हैं। व्रतरहित चतुर्थ गुणस्थानावर्ती सम्यग्दृष्टि,जघन्य अन्तरात्मा कहलाते हैं। ये तीनों (उत्तम, मध्यम, जघन्य) अन्तरात्मा मोक्षमार्ग पर चलने वाले होते हैं। परमात्मा के दो भेद हैं- सकल परमात्मा और निकल परमात्मा । घातिया कर्मों का नाश करने वाला,लोक और अलोक को देखने-जानने वाले,अंतरंग और बहिरंग लक्ष्मी सहित अरहंत भगवान सकल परमात्मा कहलाते है।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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