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May
तीसरी ढाल
निकल परमात्मा का स्वरूप और उसके ध्यान का उपदेश
ज्ञानशरीरी त्रिविध कर्ममल – वर्जित, सिद्ध महन्ता।
ते हैं निकल अमल परमातम, भोगैं शर्म अनन्ता॥
बहिरातमता हेय जानि तजि, अन्तर आतम हूजै।
परमातम को ध्याय निरन्तर, जो नित आनन्द धूजै॥6।।
अर्थ- ज्ञान ही जिनका शरीर है, तीन प्रकार के कर्ममल से रहित, सिद्ध भगवान निकल परमात्मा कहलाते हैं, जो अनन्तकाल तक सुख भोगते हैं। मिथ्यादृष्टिपने को छोड़ने योग्य जान छोड़ो और अन्तरात्मा बनो। परमात्मा का हमेशा ध्यान करो, जिससे सच्चे सुख की प्राप्ति हो।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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