02
Jun
तीसरी ढाल
आकाश, काल और आस्रव का स्वरूप व भेद
सकल – द्रव्य को वास जास में, सो आकाश पिछानो।
नियत वरतना निशि-दिन सो, व्यवहार काल परिमानो॥
यों अजीव, अब आस्रव सुनिये, मन-वच-काय त्रियोगा।
मिथ्या अविरत अरु कषाय, परमादसहित उपयोगा॥8।।
अर्थ – जिसमें सम्पूर्ण द्रव्य निवास करते हैं उसे आकाश द्रव्य जानना चाहिए। स्वयं पलटने और दूसरी वस्तुओं को पलटाने वाला निश्चय काल और रात्रि,दिन,घड़ी,घण्टा आदि व्यवहार काल जानना चाहिए। इस प्रकार अजीव तत्त्व का वर्णन हुआ। अब आस्रव तत्त्व का वर्णन किया जाता है ।मन,वचन, काय, मिथ्यात्व,अविरति,प्रमाद और कषाय सहित जो आत्मा की प्रवृत्ति है उसे आस्रव कहते हैं।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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