चतुर्थ ढाल का सारांश
सम्यग्दर्शन हो जाने के बाद धर्मों से युक्त स्व-पर पदार्थों को प्रकाशित से करने वाला जो ज्ञान प्रकट होता है वह सम्यग्ज्ञान है। यद्यपि सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान एक साथ प्रकट होते हैं फिर भी जैसे उजाला दीपक से ही होता है। उसी प्रकार सम्यग्ज्ञान सम्यग्दर्शन से ही प्रकट होता है। इन दोनों में कार्य कारण भाव है। सम्यग्ज्ञान के भेद एवं लक्षण आदि कह कर सम्यग्ज्ञान की अनिर्वचनीय महिमा दर्शायी गयी है। सम्यग्ज्ञान की महत्ता प्रकट करते हुए ज्ञानी एवं अज्ञानी के कर्मनाश में अंतर और त्रिकाल में मोक्ष प्राप्ति का अपूर्व उपाय, भेद-विज्ञान रूपी जननी से उत्पन्न होने वाला सम्यग्ज्ञान ही माना गया
सम्यग्ज्ञान-विवेचन के अन्त में जगत् के सकल दन्द-फन्द छोड़कर आत्मध्यान करने की प्रेरणा दी गयी है। पश्चात् श्रावक के बारह व्रतों का सांगोपांग विवेचन अतीव सुन्दर ढंग से किया गया है।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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