आचार्य श्री शांतिसागर महाराज का आचार(आचरण) शास्त्र का ज्ञान बहुत था। उस समय के बड़े-बड़े विद्वान उनके पास आकर अपनी शंका का समाधान करते थे। उसमें से कुछ बातें आप से साझा कर रहे हैं…
आचार्य श्री नवधा भक्ति के बारे में कहते हैं कि यह अभिमान की पोषक नहीं है, यह धर्म की रक्षा के लिए है। इससे जैनी की परीक्षा होती है। अन्य लोग धोखा नहीं दे सकते। क्षुल्लक अगर चाहे तो पांच घर से शुद्ध भोजन लेकर एक घर में शुद्ध जल लेकर वहां भोजन कर सकता है। क्षुल्लक का पाद प्रक्षालन नहीं करना चाहिए। एक अर्घ्य चढ़ाना चाहिए। 8 वीं प्रतिमा से चातुर्मास करने की विधि है । चौथी प्रतिमा तक ठंडा पानी पी सकता है। सातवीं प्रतिमा तक स्नानादि व्यवहार में ठंडे जल का उपयोग कर सकता है । व्रत प्रतिमा से छठवीं प्रतिमा तक दो बार तथा अनेक बार भोजन कर सकता है। सातवीं प्रतिमा में एक बार भोजन, संध्या को फलाहार ले सकता है। पाक्षिक श्रावक रात्रि में जल, तांबुल, औषधि ले सकता है। प्रोषधोपवास व्रत में जघन्य से एकासन करना चाहिए। व्यक्ति अधिक बीमार है, वह बैठ नहीं सकता और उसकी प्रतिमा है तो लेट कर भी बिस्तर पर सामायिक कर सकता है। व्रती व्यक्ति को अगर शुद्ध घी नहीं मिले तो वह घानी का शुद्ध तेल उपयोग में ले सकता है।
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