आज मौन साधना के पहले दिन और पहला चिंतन करते हुए बहुत समय तक यही सोचता रहा कि क्या चिंतन करूं। आज चिंतन में यह तो समझ में आ गया कि संत और चिंतक को संसारिक कार्यों से दूर रहना चाहिए तभी सकारात्मक चिंतन की शक्ति मजबूत हो सकती है। हम दिनभर जो करते हैं, पढ़ते, सुनते हैं, उन्हीं सब बातों में से चिंतन आता है। भारतीय प्राचीन धार्मिक शास्त्रों में लिखा है कि चिंतन से आत्मशक्ति मजबूत होती है। मनुष्य को सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति की संगति करनी चाहिए। जो महापुरुष बन गए हैं, उनके चरित्र को पढ़ना चाहिए और उनके चरित्र को आचरण में उतारने वालों की संगति करनी चाहिए। कोरोनाकाल में सभी चिकित्सा पद्धतियों ने एकस्वर में कहा था कि आत्मिक शक्ति से ही इस रोग से लड़ा जा सकता है। आज के चिंतन से यह तो तय हो गया कि आत्मिक शक्ति से शारीरिक, मानसिक पीड़ा से लड़ने की शक्ति मिलती है और पीड़ा को दूर किया जा सकता है। देखो ना, संसार के सभी मनुष्यों का शरीर पुद्गल वर्गणाओं (पंच तत्त्वों) से बनता है, पर सबके त्याग, साधना करने और पीड़ा को सहन करने की शक्ति अलग- अलग है। इसका सीधा सा मतलब है कि सब मनुष्यों की आत्मशक्ति में अंतर है। मनुष्य की आत्मशक्ति में यह अंतर उसके भावों से आता है। जितना अधिक हम अपने आपको, अपने आपके चिंतन में लगाएंगे और भावना करेंगे कि अन्य मनुष्यों के दुःख,पीड़ा,कष्ट दूर हों और सब लोग धर्म और धार्मिक अनुष्ठान से जुड़ें, यह आत्मशक्ति को बढ़ाती है। इन्हीं भावों से मनुष्य के आस-पास का वातावरण निर्मल, शुद्ध और सकारात्मक बनेगा। एक समय यह भी आएगा कि हर मनुष्य का भाव निर्मल होगा और एक दूसरे की पीड़ा दूर करने का भाव सबके अंदर जाग्रत होगा। तभी हम यह कहने में गौरव का अनुभव करेंगे कि हमारा भारत देश साधु -संतों का देश है और प्रभु की आराधना करने वालों का देश है।
05
Aug
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