लगभग दो महीने से दुनिया का हर व्यक्ति कोरोना जैसी भयानक महामारी से दहशत में है । इस बीमारी से फैली बर्बरता ने सब की दिनचर्या में एक विशेष अंतर ला दिया है। यह दैनिक परिवर्तन चिकित्सीय निर्देशानुसार जीवन सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं। महामारी का यह विकराल तांडव कब तक समाप्त होगा इसका किसी को पता नहीं है । किन्तु इंसान से इंसान डरने लगा है। लोग अपने घर में घुसते ही पहले जलपान आदि किया करते थे अब वे घर में घुसते ही पहले बाथरूम में जाकर नहाते हैं। अपने कपड़ों को धूप में सुखाते हैं। कुछ भी खाने से पहले हाथ धोते हैं । समय समय पर स्वयं को सेनेटाइज करते हैं । अब घर के खाने के अतिरिक्त बाहर से कुछ भी खाने में भय का माहौल है। हरी सब्जी – फल आदि भी बड़ी सावधानी से साफ कर, गर्म पानी से धोते हैं। फिर ही उसका उपयोग करते हैं । यहां तक की एक वस्तु को उठाने के बाद दूसरी वस्तु उठाने के पहले भी हाथ धोते हैं। मुँह पर कपड़ा बांध कर रख रहे हैं। यह सब देखकर और सुनकर मुझे बड़ी हंसी आती है, क्योकिं यह वही आचरण है जो लोगों को धर्म और धर्मगुरु नहीं सिखा सके किंतु एक कोरोना महामारी ने दो महीने में सिखा दिया । भगवान से यह प्रार्थना करता हूं की आज इंसान यह सब भले ही डर से सीखा हो पर अब वह आस्था और श्रद्धा के साथ जीवन भर इसे जीवन में अपनाने का संकल्प लेगा। चिकित्सा क्षेत्र ने कोरोना महामारी से बचने के लिए जो गाइडलाइन जारी कि है वह धर्म ग्रंथो में पहले से ही अंकित है। साफ-सफाई और सात्विकता बनाए रखने के प्रयोजन में कोई नवीनता नहीं है। जैसे से हाथ-पांव धोकर और दूर-दूर बैठकर भोजन करना , नमस्कार अर्थात् हाथ जोड़कर एक दूसरे का अभिवादन करना । बाहर की हर वस्तु को कम से कम दो तीन बार धोकर खाने के उपयोग में लेना । एक इंसान दूसरे से इतनी दूरी से बात करे की एक दूसरे पर श्वास या थूक ना उड़े । बस, इन्हीं कुछ बातों को समझाने के लिए कोरोना महामारी पर अब तक कई आलेख लिखे जा चुके हैं । साथ ही वैज्ञानिक ,डॉक्टर , धर्मगुरु ,ज्योतिषाचार्य अपने- अपने क्षेत्र में अलग अलग रिसर्च कर रहे हैं । अब तक किसी का भी रिसर्च एक दूसरे से पूरी तरह नहीं मिलता है । बस दो बातें ही सभी की रिपोर्ट में एक समान है, यह कि बीमारी दूर जरूर होगी और यह बीमारी तुम तक नहीं पहुँचे उसके लिए नियमों का पालन करो । इस आस्था और श्रद्धा से लोग जी रहे हैं और सोच रहे हैं की एक दिन अवश्य ही हम सुरक्षित हो जाएंगे । इस आशा के साथ अपना सब काम काज छोड़ घर में बैठे हैं।
युवा पीढ़ी और जो लोग धर्म पर विश्वास नहीं करते हैं उन सब को इस कोरोना महामारी से एक शिक्षा अवश्य लेना चाहिए की मानव जीवन में धर्म कितना जरूरी है । क्योंकि शास्त्रों में लिखा है, «पहला सुख – निरोगी काया»। एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए कैसी दिन चर्या होनी चाहिए यह बहुत पहले ही धर्म ग्रन्थों में लिखा जा चुका है । और यही आज कोरोना वाॅरियरस भी कह रहे हैं ।
जीवन में कभी कोई घटना अकारण नहीं घटती है। जब भी कोई दुख आता है तो उसके पीछे कोई पाप कर्म होता ही है । इंसान ने प्रकृति के साथ अमर्यादित छेड़ छाड़ की है, उसका परिणाम है यह कोरोना महामारी । जंगल काटे गए , हरियाली खत्म होती जा रही है ,भूमि पर खेती में केमिकल संसाधनों के अधिक प्रयोग से भूमि बंजर होती जा रही है, केमिकल आदि की फैक्ट्री लगा कर , जलाशयों में सारी गंदगी बहाकर, बिना प्रयोजन भूमि की खोदाई आदि कर रहे हैं , इन कृत्यों पर शास्त्रों में अर्थदण्ड का उल्लेख मिलता है ।
भारतीय
संस्कृति यही है की जब परिस्थिति असाधारण हो तब दवा के साथ दुआ की भी आवश्यकता
होती है तभी दवा भी अपना काम करती है। कोरोना महामारी की तो कोई दवा नहीं है, तो क्यों नहीं प्रतिदिन वैश्विक अथवा राष्ट्रीय स्तर पर दुआ का एक
सामूहिक कार्यक्रम रखा जाए। जिस प्रकार माननीय प्रधानमंत्रीजी के कहने पर पूरे देश
में घंटी बजाई गई,
दीप प्रज्वलित किए गए। इसी तरह एक
निश्चित समय पर प्रतिदिन सामूहिक प्रार्थना पर विचार होना चाहिए ।
सकारात्मकता का सामूहिक प्रहार, कोरोना जैसी नकारात्मक शक्ति पर
अवश्य ही भारी पड़ेगा। इस आपातकाल की स्थिति में आज अगर हम व्यर्थ की राजनीति और
स्वयं के लाभ-हानि को छोड़ दें और सच्चे मन से एक समय पर प्रतिदिन पूर्ण आस्था से
प्रभु का स्मरण करें, तो शायद यह कार्यक्रम लोगों में
धर्म जगा पाए। आस्था और श्रद्धा का यह बीज कोरोना की समाप्ति का माध्यम बन जाए।
अनंत सागर
अंतर्मुखी के दिल की बात (छठवां)
11 मई 2020, उदयपुर
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