इस आलेख में, जो कुछ मैं आपको बताने जा रहा हं, मेरे अपने अनुभव हैं। मन के अंतरंग उद्गार हैॆ। जब मैंने धर्म, ध्यान साधना के मार्ग पर कदम नहीं बढ़ाए थे और लौकिक पढ़ाई कर रहा था, तब मुझे ज्यादातर चीजें स्मरण ही नहीं रहती थीं। जैसे- तैसे पास होने लायक नम्बर ही परीक्षा में ले आ पाता था। पर जब से धर्म के मार्ग पर आया, याददाश्त तो बढ़ी ही, चिंतनशक्ति में भी बढ़ोतरी हुई। लौकिक पढ़ाई करते समय जो गलतियां की थी, वही आज आपके साथ साझा कर रहा हूं। धर्म के मार्ग पर पैर रखने के बाद धार्मिक अनुशासन के साथ दिनचर्या बदली। विचार बदले तो याददाश्त, स्मरणशक्ति भी बढ़ी।
शास्त्रों में कहा गया है और हम जानते भी हैं कि पढ़ाई के लिए मन, वचन और काय की स्थिरता आवश्यक है। इसके बिना पढ़ाई में सफलता मिलने की संभावना नहीं होती है। अपने से अधिक उम्र के लोगों के साथ उठना-बैठना, दोस्ती करना, रात में अधिक देर तक जागना, बिना लक्ष्य के और मन-मुताबिक किताबें पढ़ना, धनअर्जन के उद्देश्य से पढ़ना, गुरुजनों के प्रति श्रद्धा का भाव नहीं होना, समय बीतने का ध्यान ही नहीं रखना, माता-पिता और अपने से बड़ों के प्रति का विनय का भाव न होना, दूसरों के ज्ञान को देखकर खुद दुखी होना, फलां लड़का मुझसे अधिक नम्बर क्यों लाता है, क्षोभ का भाव रखना आदि कई ऐसे कारण हैं जिसकी वजह से पढ़ाई में बाधा पड़ती है और ज्यादा सफलता हाथ नहीं लगती है।
पढ़ाई का सम्बंध सरस्वती से है। बिना सरस्वती की आराधना के याददाश्त नहीं बढ़ सकती है। इसे ही धर्म की भाषा में कहते हैं- ज्ञान का क्षयोपशन नहीं बढ़ता है। लौकिक ज्ञान के साथ ही धार्मिक अनुशासन का होना भी अत्यंत आवश्यक है। धार्मिक अनुशासन से तात्पर्य है- सकारात्मक सोच और भावों की निर्मलता के साथ कार्य करना। किसी भी प्रकार का अहंकार मन में नहीं आने देना। पढ़ाई में कमजोर होने के कई कारण हैं, पर जीवन के कार्यों पर भी ध्यान देना चाहिए।
जैसे कमजोर बुद्धि वाले का मजाक नहीं उड़ाना, होमवर्क समय पर करना, प्रभु को हृदय में विराजमान कर विचार करना, तामसिक भोजन नहीं करना, पौष्टिक भोजन करना, प्रात:काल माता-पिता या गुरुजनों के चरण स्पर्श करना, अपने ज्ञान का अहंकार नहीं करना, सुबह 4 बजे उठकर अध्ययन करना और रात 10 बजे तक सो जाना, पाठ्यपुस्तकों के प्रति श्रद्धा रखना, खाते-खाते, चलते- फिरते और जब मन राग-द्वेष, कषायों, ईर्ष्या आदि से भरा हो तब पढ़ना नहीं चाहिए।
धार्मिक अनुशासन के बिना पढ़ाई नकारात्मक सोच को जन्म दे सकती है। यह पढ़ाई हमारी व्यक्तिगत छवि को खराब कर सकती है, परिवार की संस्कृति और संस्कार का नाश कर सकती है, समाज के अनुशासन को तोड़ सकती है और देश को खोखला कर सकती है। धार्मिक अनुशासन के साथ पढ़ाई सकारात्मक सोच को जन्म देती है और व्यक्ति, समाज,परिवार और देश को विकसित कर सकती है। मात्र पढ़ाई ही व्यक्ति के जीवन को सुख,समृद्ध और शांति से भरपूर नहीं बना सकती।
प्रकाशित- श्रीफल / अक्टूम्बर 2021
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