संसार में सांसारिक जीवन जीने के लिए धन की आवश्यकता होती है। उसके बिना संसार में जिया नहीं जा सकता है। व्यवहार में धन को 11 वां प्राणी कहा गया है। अब सब से बड़ा प्रश्न उठता है की धन कहा से लाएं। धन पेड़ पर तो लगता नहीं कि जहां से तोड़ कर ले आएं और काम चला ले। संसार में देखने को मिलता है कि किसी के पास बहुत धन है और किसी के पास एक समय के भोजन जितना पैसा भी नहीं है। यह कैसे हो सकता है? भगवान तो ऐसा पक्ष-पात नही कर सकते। पक्ष -पात करें तो भगवान नही। फिर जो धनवान हैं, उनके पास धन कहां से आता है….? इसका उत्तर प्राचीन शास्त्रों में मिलता है कि धर्म से धन आता है। तो सवाल यह है कि धर्म क्या है….? सकारात्मक कार्यों कार्य करने को धर्म कहते है और धर्म के अनुसार धन का उपयोग करने से धन भव-भवान्तर तक सुरक्षित रहता है। धर्म अनुसार धन का उपयोग नहीं करने वाले का धन नष्ट हो जाता है। धन चला जाए पर धर्म नहीं जाना चाहिए। राम और रावण का इतिहास हमारे पास है। राम पुत्र धर्म निभाने के लिए धन को छोड़ वन चले गए पर वन में धनवान बन कर सम्मान के साथ रहे। उधर रावण ने सीता का हरण कर मानव धर्म छोड़ा तो धन और परिवार तक ने उसे छोड़ दिया। धर्म कहता है जीवन में जितना धन कमाते हो उसका कम से कम सात प्रतिशत और अधिक से अधिक 25 प्रतिशत धन धर्म के लिए दान करना चाहिए।
अब प्रश्न यह भी उठता है कि धन का खर्च कहां करें….? तो प्राचीन शास्त्रों में कहा कि धन दान का फल भी पात्र पर निर्भर करता है। जिस दान किया गया है, वह जितना धर्म भाव और धर्म क्रिया से जुड़ा होगा उसे दान देने का उतना ही उत्तम महाफल हमें मिलेगा। दीन, गरीब, जरूरतमंद को जो दान दिया जाता है वह करुणा दान है और चारित्र के धारी मुनि को जो दान दिया जाता है वह धर्म प्रभावना और अहिंसा धर्म के प्रचार के लिए होता है। पद्मपुराण में कहा है कि मुनि की वैयावृत्ति में धन का उपयोग करने श्रावक को मुनि द्वारा कमाए गए पुण्य का सात प्रतिशत पुण्य मिलता है। धर्म और भगवान के लिए जो दान किया जाता है वह सर्वदोष रहित होता है। और महाफल देता है। जिन्हें चलते फिरते तीर्थ कहते हैं ऐसे मुनियों को श्रावक अपने धन से आहार, औषध, अभय, शास्त्र दान करें। जिनेन्द्र भगवान का मंदिर बनवाएं। मंदिर में पूजन आदि की व्यवस्था करें। अहिंसा धर्म का पालन करते हुए जो श्रावक जरूरतमंद है उनको अपना धन देकर उनकी आजीविका की व्यवस्था करें।
अनंत सागर
श्रावक
(छब्बीसवां भाग)
28 अक्टूबर, 2020, बुधवार, लोहारिया
धर्म के लिए किया गया दान सर्वदोष रहित होता है
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
(शिष्य : आचार्य श्री अनुभव सागर जी)
Give a Reply