रावण अपने संकल्प में इतना दृढ़ था कि उसको कोई विचलित नहीं कर सकता था। पद्मपुराण के पर्व 71 के अनुसार रावण जब संकल्प के साथ भगवान शांतिनाथ की भक्ति करने बैठा तो उसे कोई विचलित नहीं कर सका। यह प्रसंग प्रेरणादायक है ।
रावण जब बहुरूपिणी विद्या सिद्ध करने भगवान शांतिनाथ के मंदिर में बैठा तो उस समय अङ्गद रावण की साधना भंग करने पहुँचा। उसने रावण को कहा कि तुमने जिनेन्द्र भगवान के सामने कपट क्या फैला रखा है। सीताहरण कर तू यह पुण्य की क्रिया कर रहा है। यह व्यर्थ है। अङ्गद जोर-जोर से रावण की हंसी कर रहा था। उसे क्रोध दिलवाना चाह रहा था पर रावण अपनी साधना से विचलित नही हुआ तो अङ्गद ने रावण के हाथ से जाप माला लेकर तोड़ दी। अङ्गद ने स्त्रियों को परेशान करना प्रारम्भ कर दिया। रावण से अङ्गद कहता है कि तुमने सीता का हरण किया है तो अब मैं तेरी सभी स्त्रियों का हरण करूंगा। तुम्हारी सबसे प्यारी मंदोदरी का हरणकर ले जाऊंगा और वह राजा सुग्रीव पर चंवर ढुलायेगी।
यह सब सुनकर मंदोदरी ने रावण से कहा कि तुम यह सब नही देख रहे कि किस प्रकार यह अङ्गद उत्पात कर रहा है। हमारे लिए क्या-क्या बोल रहा है, क्या तुम्हें यह सुनाई नही दे रहा है। पर रावण तो निश्चल होकर अपनी साधना में लीन था। भगवान शांतिनाथ की भक्ति कर रहा था। जैसे राम सीता का ध्यान कर रहा था उसी प्रकार रावण अपनी विद्या का ध्यान कर रहा था। इन स्थितियों के बीच ही रावण को विद्या सिद्ध हुई।
इस प्रसंग से प्रेरणा लेनी चाहिए कि जिनेन्द्र भगवान की साधना, भक्ति, आराधना में अपने आपको रावण जैसा लगा लो तो संकल्प पूरा होता ही है।
अनंत सागर
प्रेरणा
अड़तालीसवां भाग
1 अप्रैल 2021, गुरुवार, भीलूड़ा (राजस्थान)
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