जीवन की सच्चाई को जानने के लिए कर्म सिद्धांत को समझना अत्यंत आवश्यक है। कर्म सिद्धांत को प्रैक्टिकल में समझने के लिए स्वयं के जीवन में घटित घटनाओं को आधार बनाना होगा। हमंे इस बात का पता नहीं होता है कि हमें कब सुख मिलेगा और कब हम दुखी हो जाएंगे। कुछ समय पहले कोई व्यक्ति खुश था तो कुछ समय बाद वह दुःखी हो गया। यह कैसे हुआ? क्या कोई अपने आप को दुखी करना चाहता है? तो फिर यह सब जीवन में क्यों होता है? उत्तर एक ही है-सब कर्म का फल है।
तुम घर से भगवान की आराधना कर के निकले, निर्मल भावों के साथ निकले और आगे जाकर कोई दुर्घटना घट जाए। दुर्घटना तो हो जाए, लेकिन तुम्हें कोई क्षति ना पहुंचे, तो मन कहता है कि मैं तो अच्छे भाव से घर से निकल था, यह क्या हो गया? फिर विचार आता है कि दुर्घटना तो बड़ी हो गई पर मुझे तो कुछ नही हुआ? ऐसा मेरे साथ क्यों हुआ? कुछ इसी तरह के प्रश्न उठते है। तुम खुद ही यह सोचो कि गाड़ी तुम चला रहे थे, यानी कोई और जिम्मेदार नहीं था, फिर भी दुर्घटना हुई तो अखिर यह किसने करवाई ? तो सत्य जवाब यही है कि कर्म के उदय से यह घटना घटी पर तुम्हारा पुण्य था कि यह दुर्घटना तुम्हें बिना क्षति दिए निकल गई। दुर्घटना होना और उसके बाद भी तुम्हारा सुरक्षित रहना, यह सब तुम्हारे धर्म-ध्यान, अभिषेक, पूजन, गुरु सेवा के किए गए कर्मो का ही पुण्य था।
बंधे कर्म का फल भोगना ही है। उसके लिए निमित्त कोई भी बन सकता है, इसलिए जीवन की हर घटना को स्वयं के कर्म का फल मानकर जीना सीख लो तो अशुभ कर्म बंधने का सिलसिला बंद हो जाएगा।
अनंत सागर
कर्म सिद्धांत
(बत्तीसवां भाग)
8 दिसम्बर, 2020, मंगलवार, बांसवाड़ा
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
(शिष्य : आचार्य श्री अनुभव सागर जी)
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