दुनिया में जितने व्यक्ति है उनके अंदर विश्वास, आत्मविश्वास और अंधविश्वास ने हर व्यक्तित्व सामर्थ्यानुसार जगह बना रखी है। मानव जीवन इन्हीं विश्वास के प्रकारों पर संचालित होता आया है। दुनिया में त्याग, तप आदि करने वाले, परिवार, घर,परिग्रह को छोड़ आत्म साधना करने वाले कम और कुरीतियों को अपनाने वाले लोग अधिक दिखाई दे रहे हैं। आज संसार में यही सब हो रहा …. अधिकतर लोग विश्वास के अतिरिक्त उसके इन्हीं प्रकारों में सब उलझे पड़े हैं। यह द्वंद किसी को आत्म चिंतन नहीं करने देता है।
विश्वास – एक व्यापक भाव है जिससे हम संसार में पवित्र आत्मा के अस्तित्व को स्वीकारते हैं। अपने प्रथम गुरू माता-पिता के द्वारा प्रदत्त आशीर्वचनों को जीवन में ग्रहण करते हैं । परिवार, समाज, देश की परंपराओं का पालन करते हैं । दुसरों के प्रति मान-सम्मान का भाव रखते हैं। सदैव अहिंसा, करुणा, दया का भाव रखना, त्याग, तप, साधना को जीवन में उतारने का पुरुषार्थ करना, प्रभु भक्ति, संत की सेवा, प्राचीन महापुरुषों के जीवन चरित्र को आदर्श मान कर अपने जीवन को लक्ष्य केन्द्रित करना ही विश्वास है। विश्वास से ही मानव में मनावता का जन्म होता है। मंदिर और आस्था के क्रेन्द्रों में जाकर मानव अपने भाव निर्मल करता है। दूसरों के लिए दुआ- प्रार्थना करता है। इसी विश्वास से आज विभिन्न धर्मस्थलों में प्रभु की आराधना उपासना हो रही। विश्वास ही प्रकृति के संरक्षण कारण है, प्राणियों को दाना-पानी मिल रहा है। विश्वास से ही व्यक्ति के अंदर धर्म का समावेश होता है। वर्तमान में हम देख रहे हैं की कोरोना जैसी महामारी से लड़ने के लिए सावधानी के साथ प्राचीन मंत्रो, स्तोत्रों, भक्ति को साधन मानकर कर मानव मात्र की कल्याण की भावना से लाखों लोग का यह विश्वास है कि शीघ्र ही सब ठीक हो जाएगा।इसी विश्वास के साथ लाखों लोग कोरोना महामारी से लड़ रहे हैं।
आत्मविश्वास – यह एक स्व-केन्द्रित शब्द है, इससे आशय है «स्व» के बारे में सोचना। स्वयं को बुरी आदतों से दूर रखना। स्वयं में गुणों का विकास करना।अपने अवगुणों को देखना उसे दूर करना। अपने आत्मिक उत्थान हेतु स्वयं को दुनिया से अलग जानते हुए एकांत, ध्यान को अपने जीवन का अंग बना लेना। जंगलों, पहाड़ों में विचरण कर आत्म शक्ति को बढ़ाना। सब कुछ जाते हुए भी अनजान बनकर मौन साधना करना। अपने आप को दुनिया का सब से छोटा व्यक्ति समझना। पूण्य के प्रभाव से धन, वैभव सुख के सारे साधन होने पर भी उनसे मोह नहीं रखना। शरीर को धर्म का साधन मात्र मान आत्म चिंतन करना । आत्म चिंतन से आत्मविश्वास प्राप्त होता है। आत्मविश्वास से ही हर परिस्थिति में सुखी रहने की विचार शक्ति का जन्म होता है।आत्म शक्ति को प्रकट कर, ध्यान के पथ पर आगे बढ़कर अपने भावों को शुद्ध करता हुआ स्वयं के अंदर के प्रभु को प्रकट कर लेता है। वह स्वयं प्रभु बन जाता है। प्राचीन शास्त्रानुसार आत्मविश्वास से ही भगवान आदिनाथ 6 महीने तक ध्यान में खड़े रहे और एक वर्ष बिना आहार के रहे। वर्तमान में देख रहे हैं की सभी धर्मगुरु कोरोना से लड़ने के लिए यही उपदेश दे रहे की आत्म शक्ति बढ़ाओ। आत्म चिंतन करो, सकारात्मक सोच रखो, आत्मविश्वास बढ़ाओ, ध्यान, योग करो।आत्मा तो अजर अमर है अविनाशी है। अतः आत्म शक्ति और आत्मविश्वास ही वह मजबूत नींव है जिससे कोरोना जैसी आसुरी ताकत से लड़ने की शक्ति मिलती है।
अंधविश्वास – विवेकहीनता का पर्याय है, जैसे दूसरों के कहने में आ जाना। हिंसा, अहिंसा में अंतर नहीं समझना। अच्छे-बुरे कार्य की पहचान न कर पाना। कुरीतियों को बढ़ावा देने की मानसिकता । वैज्ञानिक और धर्म संगत बातों में विश्वास नहीं करना। स्वविवेक के अभाव में भय, क्रोध, ईर्ष्या, लोभ और अहंकार ग्रसित होना ही अंधविश्वास है। अंधविश्वास से मानव राक्षस बन जाता है। वह दूसरों को दुख पहुँचाकर कर ही खुद सुखी होना चाहता है। किशनगढ़ तहसील में एक अंधविश्वासी झाड़ा लगाकर कोरोना महामारी का इलाज कर रहा था। आज वह स्वयं इसी बीमारी से ग्रसित है । आज भी आदिवासी लोग बुखार आदि जैसी बीमारी होने पर गर्म – गर्म लोहे के वस्तु से निशान शरीर पर करवाते हैं। जिसे वह आदिवासी अपनी भाषा में डॉव कहते हैं।आज भी राजस्थान के भीलूड़ा गांव में होली पर पत्थर का खेल खेलते हैं, जिसे पत्थर की लाड़ कहते हैं। दो पक्ष बनाकर एक दूसरे पर पत्थर फेके जाते हैं । कहीं पर स्त्री को अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए गर्म गर्म तेल में हाथ डालना होता है। यह सब अंधविश्वास है जो व्यक्ति का विकास नहीं होने देता।
सार यह है, कि विश्वास व्यक्ति को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति हेतु पुरुषार्थ करना सिखाता है, जिससे मानव जीवन सार्थक हो और जीवन का लक्ष्य प्राप्त हो। विश्वास ही प्रकृति का संरक्षक बन तनाव से लड़ने की शक्ति देता है।आत्मविश्वास तनाव मुक्त कर मानव को प्रभु बना देता है। अंधविश्वास मानव को दया रहित बना देता है और वह राक्षस जैसा हो जाता है। विश्वास से आत्मविश्वास बढ़ता है और मानव प्रभु बन जाता है अंधविश्वास से विश्वास और आत्मविश्वास दोनों ही जीवन में नहीं रहते हैं। इन तीनों के बीच एक महीन लकीर की भांति अंतर है अतः अब हम स्वविवेक से जाने कि बहमूल्य मानव जीवन को सुख , शांति और समृद्धि के साथ कैसे जी सकते हैं ।
अनंत सागर
अंतर्भाव
(दूसरा)
8 मई 2020, उदयपुर
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