मुनि पूज्य सागर की डायरी से
आज मेरी मौन साधना का 10 दिन । जितना मैं निर्विकल्प होता जा रहा हूं, उतना ही खुद को पा रहा हूं। मेरे मन और मस्तिष्क को बहुत कुछ सकारात्मक सोचने और विचारने को मिल रहा है। मैंने यह भी महसूस किया कि साधना के शुरू के दिनों में मैंने खुद की गलतियां भी स्वीकार की हैं, उसी की बदौलत आज मैंने अपने भीतर निर्विकल्प के साथ सकारात्मक सोच को जन्म दिया। हर घटना में सकारात्मक सोच की दृष्टि रखने लगा हूं। यह बात अब बिल्कुल स्पष्ट हो गई है कि अपनी गलतियों को स्वीकारना पाप नहीं, बल्कि प्रायश्चित है और यही वजह है कि मैं विवादों और नकारात्मक सोच से बचने लग गया हूं। मैं अपनी कमियों या गलतियों को खुद स्वीकार कर उन्हें दूर करना भी शुरू कर दिया है। मेरा विश्वास कर्म सिद्धांतों का अनुसरण करने में है। मैं खुद पर भी नजर रख रहा हूं और खुद के सवालों के जबाव भी अपने आप को दे रहा हूं। मैंने अनुभव भी किया है कि मौन साधना से मैं शांत महसूस कर रहा हूं। किसी की असफलताएं देखने के बजाए, उसकी सफलता पर भी ज्यादा ध्यान देना चाहिए। यह भी समझ आ रहा है कि कर्म सिद्धांत कभी भी रिश्ते-नाते, अमीर-गरीब, काला-गोरा या छोटा-बड़ा नहीं देखता, वह आचरण, विचार और भावनाएं देखता है। इसी के अनुरूप मेरा भविष्य और शेष बचा वर्तमान होगा। यही सोच कर मैं अपनी दिनचर्या बनाने का मंथन कर रहा हूं। सोच रहा हूं कि आखिर मेरी दिनचर्या कैसी हो, जिस पर मेरा भविष्य और वर्तमान टिका हुआ है। साधना से मैं बहुत कुछ सीख हूं। जब मैं यह सब सोच रहा था तो उस वक्त मेरी स्मृति में सीता का स्मरण आ गया। सीता ने भी राम को धर्म नहीं छोड़ने का संदेश दिया था ।
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