नदी पार करना हो तो नाविक अनुभवी चाहिए। अन्यथा नाव कहीं भी और कभी भी डूब सकती है। कहने का अभिप्राय है, जो स्वयं अनुभवी नहीं है या गलत मार्ग पर चल रहे हैं। वह दूसरों को सही मार्ग नहीं बता सकते। शराब पीने वाला कभी भी दूसरे व्यक्ति की शराब नही छुड़वा सकता है । जो मनुष्य संसार को बढ़ाने वाले कार्य में लगा हो, वह कैसे अन्य को संसार से तारने का उपदेश दे सकता है। संसार को पार करने का सही रास्ता वही दिखा सकता है जो परिग्रह से रहित हो । हिंसा से मुक्त हो। जो इन सब में लीन हो उनकी पूजा आदि करना पाप का कारण है। इसे धार्मिक ग्रन्थों में गुरुमूढता कहा है ।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में बताया है कि परिग्रह करने वाले गुरु की पूजा करने से क्या दोष लगता है…
सग्रन्थारम्भ-हिंसानां, संसारावर्त-वर्तिनाम्।
पाषण्डिनां पुरस्कारो, ज्ञेयं पाषण्डिमोहनम् ॥24॥
अर्थात- परिग्रह आरम्भ और हिंसा से सहित संसार भंवर/चक्र में कारणभूत कार्यों में लीन साधुओं का आदरसत्कार / आगे करना / पूजा करना पापण्डिमूढता/गुरुमूढता जानने योग्य है।
जो दासी या दास आदि परिग्रह खेती आदि आरम्भ और अनेक प्रकार के प्राणीवध रूप हिंसा से सहित हैं तथा संसार में अवर्त- भ्रमण कराने वाले विवाह आदि कार्यों में संलग्न हैं, ऐसे साधुओं की प्रशंसा करना तथा उन्हें धार्मिक कार्यों में अग्रसर करना पापंडीमूढता जानना चाहिए। पापण्डी का अर्थ गुरु होता है और मूढ़ता का अर्थ अविवेक है। गुरु विषयक जो अविवेक है, वह पापण्डिमूढ़ता है।
सार है कि हमें सदैव ऐसे गुरु का अनुसरण करना चाहिए जो परिग्रह, हिंसा तथा मोह माया से दूर हो।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 30 वां दिन)
रविवार, 30 जनवरी 2022, बांसवाड़ा
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