ज्ञान और आचरण की कीमत तभी है जब उसके साथ श्रद्धा एवं विश्वास हो। मनुष्य के ज्ञान और आचरण का आधार भगवान की दिव्य ध्वनि ना हो तो उसकी कोई कीमत नही है। यह विश्वास होना चाहिए कि मेरा एक एक शब्द एवं आचरण प्रभु की देशना का अंश है। मनुष्य के पास कितना भी धन और नाम हो पर उसके पास सद्बुद्धि और आचरण न हो तो उस मनुष्य के लिए कभी भी सम्मान एवं आदर का भाव नहीं निकलेगा। यह तो स्पष्ट है जब तक ईश्वर के प्रति श्रद्धा, विश्वास नहीं होगा तब तक न तो शाश्वत सुख की, न तो संसारी सुख की और नही ज्ञान,आचरण की वृद्धि और स्थिरता उत्पन्न हो सकती है।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में सम्यग्दर्शन की प्रधानता बताते हुए कहा है….
विद्यावृत्तस्य सम्भूतिस्थितिवृद्धिफलोदया।
न सन्त्यसति सम्यक्त्वे, बीजाभावे तरोरिव ॥32 ॥
अर्थात- बीज के अभाव में वृक्ष की तरह सम्यग्दर्शन के न होने पर ज्ञान और चारित्र की उत्पत्ति, स्थिरता, वृद्धि और फल की प्राप्ति नहीं होती।
विद्या का अर्थ मति आदि ज्ञान है तथा वृत्त का अर्थ सामायिक आदि चारित्र है। संभूति का अर्थ प्रादुर्भाव प्रकट होना है, स्थिति का अर्थ पदार्थ का जैसा स्वरूप है वैसा जानना तथा कर्म निर्जरा का हेतु होकर रहना है। वृद्धि का अर्थ उत्पन्न होकर आगे-आगे बढ़ते जाना है और फलोदय का अर्थ देवादि की पूजा से स्वर्ग तथा मोक्षादि की प्राप्ति होना है। जिस प्रकार मूल कारण रूप बीज के अभाव में वृक्ष की उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि और फल की प्राप्ति नहीं होती, उसी प्रकार मूल कारणभूत सम्यग्दर्शन के अभाव में ज्ञान और चारित्र की न उत्पत्ति होती है, न स्थिति होती है, न वृद्धि होती है और न फल की प्राप्ति होती है। कहने का अभिप्राय है ज्ञान और चारित्र सम्यगदर्शन के बिना संभव नहीं है।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 38 वां दिन)
सोमवार, 7 फरवरी 2022, बांसवाड़ा
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