एक बार आचार्य श्री शांतिसागर महाराज एक दिगम्बर जैन मन्दिर में निंद्राविजय तप कर रहे थे। शाम का समय हो गया था, पुजारी आया और दीपक में तेल भर कर दीपक जला कर चला गया। आचार्य श्री सिद्ध भगवान का ध्यान कर रहे थे। इतने में धीरे-धीरे करते अनेक चींटियां आचार्य श्री के शरीर पर चढ़ने लगीं। कुछ समय बाद तो शरीर के अधोभाग और नितंब पर चींटियां चढ़ गईं और वहां से खून निकलने लगा लेकिन आचार्य श्री अपने ध्यान में लगे रहे। चींटियां लगातार उनके शरीर को खा रही थीं। उसी दिन रात्रि में पुजारी को स्वप्न आया कि मंदिर में आचार्य श्री कष्ट में हैं लेकिन रात में उसकी अकेले मंदिर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी क्योंकि मंदिर गांव के बाहर था और वहां शेर आदि आते रहते थे। पुजारी ने एक दूसरे व्यक्ति को उठाया और कहा कि चलो, एक बार आचार्य श्री को देखकर आते हैं लेकिन वह व्यक्ति उठा नहीं तो पुजारी भी नहीं गया। सुबह होते ही पुजारी और अनेक लोग मंदिर पहुंचे तो देखा कि आचार्य श्री के सारे शरीर पर चींटियां हैं, शरीर सूज गया है, खून निकल रहा है। यह देखकर लोगों की आंखों में आंसू आ गए। लोगों ने आचार्य श्री के शरीर से चींटियों को अलग करने के लिए गुड़ और शक्कर थोड़ी दूर पर डाल दिया। धीरे-धीरे चींटियां शरीर से निकलकर गुड़ और शक्कर की ओर बढ़ने लगीं। उसके बाद लोगों ने आचार्य श्री की वैयावृत्ति की। ऐसे थे हमारे आचार्य श्री शांतिसागर महाराज, जिन्होंने इतना बड़ा उपसर्ग आने पर भी अपना नियम नही छोड़ा और परमात्मा का ध्यान करते रहे।
12
Jun
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