असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल के बीत जाने पर हुण्डावसर्पिणी काल आता है। आज हुण्डावसर्पिणी काल में होने वाली विशेष घटनाओं के बारे में पढ़ते हैं। इनके अलावा और भी घटनाएं हो सकती है जो आप को आगम शास्त्रों में मिलें तो उन्हें भी स्वीकार कर लेना।
• तृतीय काल में प्रथम तीर्थंकर का जन्म होना।
• तीर्थंकर आदिनाथ के यहां कन्याओं का जन्म होना।
• तीर्थंकर आदिनाथ को वैराग्य कराने के लिए इंद्र द्वारा नीलांजना का नृत्य करवाना ।
• आदिनाथ भगवान को एक वर्ष तक आहार नही मिलना।
• आदिनाथ भगवान के सामने 363 मिथ्यामत का प्रचलन होना, जो अभी तक बने हुए हैं।
• आदिनाथ भगवान के दीक्षित हुए 4 हजार मुनियों का भ्रष्ट होना।
• सभी तीर्थंकरों का जन्म अयोध्या में नहीं होना।
• सभी तीर्थंकरों का सम्मेदशिखर से मोक्ष नही होना।
• तीर्थंकरों की ऊँचाई एवं आयु समकालीन अन्य मनुष्यों से कम होना।
• तीर्थंकर आदिनाथ, तीर्थंकर शांतिनाथ, तीर्थंकर कुन्थुनाथ और तीर्थंकर अरहनाथ के वंश में से नरक जाना।
• प्रथम चक्रवर्ती का दिग्विजय के दौरान प्रथम काम-देव द्वारा हार जाना।
• ब्रह्मदत्त और सुभौम चक्रवर्ती का नरक चले जाना।
• समवशरण में विराजमान अंतिम तीर्थंकर की दिव्यध्वनि का लम्बे समय तक नहीं खिरना।
• शलाका पुरुषों की संख्या में कमी आना।
• प्रथम चक्रवर्ती द्वारा अपने ही वंश के सदस्य छोटे भाई क्षायिक सम्यग्दृष्टि तद्भव मोक्षगामी प्रथम कामदेव पर चक्र चलाना।
• कुछ तीर्थंकरों पर मुनि अवस्था में उपसर्ग होना ।
(श्री सुपार्श्वनाथ जी, श्री पारसनाथ जी , श्री महावीर स्वामी जी )
• प्रथम तीर्थंकर को सबसे पहले मुक्ति का लाभ ना मिलना (अनन्तकीर्ति जी और बाहुबली जी का पहले मोक्ष चला जाना)।
• तृतीय काल में भोगभूमि होते हुए भी कल्पवृक्षों का लोप हो जाना।
• महापुरुष बलभद्र रामचन्द्र जी को पत्नी की दीक्षा के बाद वैराग्य होना।
• पांच तीर्थंकरों का बाल ब्रह्मचारी (अविवाहित) होना
• प्रथम तीर्थंकर द्वारा हुई वर्ण व्यवस्था में प्रथम चक्रवर्ती द्वारा सुधार किया जाना। (नया ब्राह्मण वर्ण बनाया)
• 6 विद्या के उपदेश जो अंतिम कुलकर देते हैं वो भगवान आदिनाथ ने दिए।
• तीर्थंकरों का अनेक पदवीधारी होना। (जैसे शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरहनाथ भगवान का चक्रवर्ती होना )।
• तीर्थ काल का विच्छेद (शांतिनाथ भगवान तक तीर्थ काल का विच्छेद हुआ )।
अनंत सागर
श्रावक
(चौतीसवां भाग)
23 दिसम्बर, 2020, बुधवार, बांसवाड़ा
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
(शिष्य : आचार्य श्री अनुभव सागर जी)
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