मनुष्यों को सदैव अपनी इच्छा के परिमाण समझने चाहिए। इस बात का स्मरण रहे कि इच्छाएं ही दु:ख का कारण होती हैं। इच्छा के समान कोई व्याधि नहीं है। पद्मपुराण के पर्व 14 में इससे जुड़ा एक प्रसंग है। वह परिग्रह परिमाण को बताने वाला है। आएं, हम सब उस कथा को सुनते हैं।
फल आदि बेचने वाला भद्र नाम का एक पुरुष था। उसकी प्रतिज्ञा थी कि वह दिन में एक दीनार ही कमाएगा। एक दिन मार्ग में उसे एक बटुवा मिला, उसमें बहुत सारी दीनारें थीं। उसने कोतूहलवश बटुवे से एक दीनार निकाल ली और बटुवा वापस उसी स्थान पर रख दिया।
दूसरा कांचन नाम का मनुष्य वहां से गुजरा, तो उसने बटुवा देखकर उसे उठा लिया। वह बटुवा राजा का था। इस बात का पता लगाया गया कि वह बटुवा कहां और किससे पास है? राजा को इस बात की जानकारी मिली कि वह बटुवा कांचन के पास है। राजा ने कांचन को सजा दी। जब भद्र को पता चला तो उसने बिना मांगे एक दीनार राजा को लौटा दी। यह देखकर राजा ने उसका सम्मान किया।
इस कथा से हम सब श्रावकों को प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि जीवन में छोटी-छोटी प्रतिज्ञा भी पूण्य का संचय और दु:ख को दूर करती है।
शब्दार्थ व्यवहारिक
कोतूहलवश- उत्सुकता, परिग्रह परिमाण- उपयोग में आने वाली वस्तु का गिनती तय करना, अंकुश-नियंत्रण।
अनंतसागर
श्रावक
चालीसवां भाग
03 फरवरी 2021, बुधवार, बांसवाड़ा
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