पर्युषण पर्व विशेष – दसवां दिन – उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म
दशलक्षण धर्म का अंतिम परंतु सबसे प्रभावी लक्षण है उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म। शास्त्रों के अनुसार अतीन्द्रिय आनंद जहां पर उद्भूत होता है, वह जीव की ब्रह्मचर्य की दशा मानी जाती है। आत्म की प्राप्ति होना उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म कहा गया है। गुरु की आज्ञा में रहना और उनके मार्गदर्शन पर चलना भी ब्रह्मचर्य धर्म है। सादगी पूर्ण जीवन जीना, राग भाव का ना होना और इंद्रियों से नाता तोड़कर अपने आप को ध्यान के लिए तैयार कर लेना ही वास्तव में ब्रह्मचर्य धर्म है। ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करने से शक्ति का संचार होता है, स्मरण शक्ति बढ़ती है और चेहरे पर चमक आती है। पश्चिमी सभ्यता को अपनाने वाला कभी भी ब्रह्म्चर्य धर्म का पालन नहीं कर सकता है। ब्रह्मचर्य को बहुत सरल शब्दों में समझना चाहें तो यह कह सकते है कि जो परिवार और समाज के संस्कार और संस्कृति को अपना लेगा वही ब्रह्मचर्य धर्म का निर्वाह कर सकता है।
देव गति मे देवों के लिए तो स्पष्ट वर्णन आया है कि स्पर्श, रूप, शब्द और मन से मैथुन हो जाता है। मनुष्यों में हम देखते है किस प्रकार से पश्चिम संस्कृति के कारण हमारे आप-पास का वातावरण खराब होने के कारण मन, वचन और काय से विकार भाव हो जाते हैं, वासना का भाव जाग जाता है। ब्रह्मचर्य धर्म के निर्वाह के लिए इंद्रियों पर नियंत्रण रखने के साथ ही भारतीय संस्कार और संस्कृति ग्रहण करने का भाव पैदा करना होगा। तभी हम ब्रह्मचर्य को जीवन में आत्मसात कर पायेंगे।
आज का जाप –
ऊँ ह्रीं उत्तम ब्रह्मचर्य धर्मांगाय नम:
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