मुनि पूज्य सागर की डायरी से
मौन साधना का 47वां दिन। विवाद में नहीं सुलह में, तर्क में नहीं जिज्ञासा में, बोलने में नहीं सुनने में, क्रोध में नहीं क्षमा में, तोड़ने में नहीं जोड़ने में खुशियां छुपी हुई हैं। ऐसा करने से खुशी मिलती भी है और दूसरे भी खुश होते हैं। फिर क्यों हम खुशी के लिए न जाने दुनिया में कहां- कहां नहीं भटक रहे हैं। हम दूसरों में खुशी ढूंढ रहे हैं लेकिन स्वयं के आचरण को बदलने से खुशियां अपने आप आ जाती हैं।
अपने आपको इतना सहज, सरल और आचरण को इतना निर्मल बना लें कि हर कोई हमसे बात करने में, हम तक पहुंचने में, अपनी बात कहने में किसी प्रकार डरे नहीं। साथ ही यह संकल्प भी कर ले कि मैं किसी से ऐसी बात, ऐसा मार्गदर्शन नही दूंगा जिससे उसका धर्म,संस्कार,संस्कृति, परिवार की परम्परा दूषित हो। साथ ही अपना आचरण भी ऐसा नहीं रखूंगा जिससे मेरा धर्म, संस्कार, संस्कृति, परिवार की परंपरा दूषित हो। बिना धर्म, संस्कार आदि के जीवन में खुशियां की कल्पना करना व्यर्थ है। इंसान की अपनी पहचान उसकी इंसानियत है और इंसानियत जिसके पास है, खुशियां उसके कदम चूमती है। जब खुशी का अनुभव नहीं हो तब यह समझना कि इंसानियत चली गई। उसी समय यह खोज करना शुरू कर देना कि मैंने अपनी इंसानियत कहां खोई है। जिस समय यह पता चल जाएगा, उसी समय खुशी लौट आएगी।
कभी आपने किसी पशु- पक्षी को इंसान के नाम से बुलाते देखा है क्या? पर इंसान को जानवरों के नाम से बुलाते तो देखा है। जैसे किसी इंसान को गधा, कुत्ता आदि कह देते हैं। वजह यह कि इंसान ने अपनी खुशियों को छोड़कर अपने आचरणों को जानवरों जैसा बना लिया है।
सोमवार, 20 सितम्बर, 2021 भीलूड़ा