जैसी करनी वैसी भरनी। जैसा करोगे वैसा ही फल मिलेगा। जिस मनुष्य ने देव, शास्त्र, गुरु के लिए अपना मन, वचन, काय समर्पित कर दिया है तथा जिसने अपने धन का उपयोग धर्म कार्य में, आहार, विहार, जिनमंदिर निर्माण- जीर्णोद्धार आदि एवं प्राणी मात्र के कल्याण के लिए खर्च किया है, वह मनुष्य संसार के सारे सुख प्राप्त करता है और अंत मे मोक्ष भी प्राप्त करता है। चामुंडराय ने अपने धन का उपयोग माँ की भावना को पूरा करने में लगा दिया और आज हमें श्रवणबेलगोला के बाहुबली भगावान की प्रतिमा के दर्शन हो रहे हैं। वर्षो से जैन धर्म का इतिहास सुरक्षित है और आगे भी वर्षों तक रहेगा। आज हम बाहुबली भगवान के साथ चामुंडराय को याद करते हैं । आज भी उसका यश फैल रहा है।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में कहा है कि …
ओजस्तेजो विद्यावीर्ययशोवृद्धि विजयविभवसनाथाः ।
माहाकुला महार्था, मानवतिलका भवन्ति दर्शनपूताः ॥36॥
अर्थात- सम्यग्दर्शन से पवित्र जीव उत्साह, प्रताप, कान्ति, विद्या सहजता से सभी कलाओं को ग्रहण करने बाली बुद्धि, विशिष्टबल, विशिष्टख्याति, स्त्री, पुत्र, पौत्र आदि की प्राप्तिरूप वृद्धि, विजय-दूसरे के परास्त या तिरस्कार से अपने गुणों का उत्कर्ष और विभव-धन-धान्य द्रव्य आदि की प्राप्तिरूप सम्पत्ति इन सबसे सहित उच्च कुलों में उत्पन्न धर्म, अर्थ, काम व मोक्षरूप चारों महान् पुरुषार्थों को करने वाले और मनुष्यों में प्रधान होते है।
यहां पर जिन सुख की बात की गई है। इन सब सुख की भावना से वह धर्म नहीं करता, बल्कि अपने आप को सम्पूर्ण कर्मों से रहित होने की भावना करता है । यह सब सुख बिना भावना करे ही मिल जाते हैं, क्योंकि सम्यग्दर्शन का फल तो मोक्ष है पर मोक्ष नहीं मिले तो स्वर्ग और संसार के सुख तो अपने आप ही मिल जाते हैं । आचार्य पूज्य पाद स्वामी ने इष्टोपदेश में कहा कि जो मनुष्य वजन उठाकर दो कोस चल सकता है तो आधा कोस सहजता से चल सकता है। इसका अर्थ स्पष्ट है कि जो मोक्ष का राही है, उसे संसार और स्वर्ग सुख अपने आप मिल जाएंगे ।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 42 वां दिन)
शुक्रवार, 11 फरवरी 2022, बांसवाड़ा
Give a Reply