एक अच्छा मनुष्य बनने के लिए जिनालय जाने की आवश्यकता है। जिनालय में विराजमान भगवान की प्रतिमा हम सब के मन, वचन, कार्य को पवित्र करती है। पद्मपुराण के पर्व 14 में जिनेन्द्र भगवान के दर्शन के महत्व का जो वर्णन है, उसका कुछ अंश यहां आप सबके लिए प्रस्तुत है।
• जो सहजता से जिनेन्द्र भगवान को प्रणाम (नमस्कार) करता है, वह पूण्य का आधार है। उसके जीवन में पाप अंश मात्र भी नहीं रहता।
• नमस्कार तो बहुत दूर की बाद है, जो जिनेन्द्र भगवान को भाव के साथ स्मरण करता है, उसके करोड़ों भाव के संचित पाप क्षण भर ने नष्ट हो जाते हैं।
• जो जिनेन्द्र भगवान को अपने हृदय में धारण करता है, उसके सब ग्रह, स्वप्न और शगुन आदि की सूचना देने वाले पक्षी सदा शुभ ही रहते हैं।
• जो अर्हते नमः अर्थात अर्हन्त के लिए नमस्कार हो। इस शब्द का भाव सहित उच्चारण से समस्त दु:ख समाप्त हो जाते हैं।
• जिनेन्द्र भगवान की चन्द्र समान शीतल कथा से ही हृदय प्रफुल्लित हो जाता है।
• अरिहंत आदि परमेष्ठी को नमस्कार कर जिन शासन के भक्तजनों से स्नेह रखने वाला शीघ्र ही मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।
• भाव के साथ जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करने वाला चाहे राजा हो, साधारण कुटुम्बी हो, धनाढ्य हो, दरिद्र हो अथवा वह कोई भी हो उसे एक सामना फल मिलता है।
शब्दार्थ
जिनालय- मंदिर, आधार- कारण, भाव- मन-वचन-कार्य के साथ, शकुल- संकेत, परमेष्ठि- जो परम पद में स्थित है।
अनंत सागर
पाठशाला
(चालीसवां भाग)
30 जनवरी, 2021, शनिवार, बांसवाड़ा
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