संसार में जिनेन्द्र भगवान की शरण प्राप्त करने वाला संकट, आपदा, युद्ध आदि से बचने के साथ ही सुख,सम्पदा आदि प्राप्त करता है। पद्मपुराण के पर्व 5 में रावण के वंशज मेघवान के जीवन का एक प्रसंग मिलता है जो हम सब के लिए प्रेरणा देने वाला है।
मेघवान और सहस्त्राक्ष का युद्ध हो रहा था। युद्ध को छोड़कर मेघवान भगवान अजितनाथ के समवसरण में चला गया। वहां वह दिव्य ध्वनि का रसपान करने लगा। समवसरण में ही राक्षस जाति के देवों के इन्द्र, भीम और सुभीम आए हुए थे। उन्होंने मेघवान से कहा कि यह तुमने अच्छा किया जो युद्ध को छोड़कर तुम जिनेन्द्र देव की शरण में आ गए। तुम्हारा यह कार्य प्रेरणा देने वाला है। हम तुझ से प्रसन्न हैं। इस पृथ्वी पर राक्षस द्वीप है। इसमें लंका नगरी है। तुम इसी नगरी में अपने परिवार सहित रहो। यह नगरी सुंदर है। भीम, सुभीम ने उसे देवताओं द्वार रक्षित हार दिया। इसके साथ ही अत्यंत दुर्लभ एक नगर और दिया जिसका नाम अलंकारोदय था। इसमें सामान्य मनुष्य तो प्रवेश कर ही नही सकता था, पर देवताओं का प्रवेश भी दुर्लभ था। इस नगरी की अनेक देवता रक्षा करते थे।
तो इस तरह देखा आपने कि जिनेंद्र देव की शरण से कैसे मेघवान को भयमुक्ति के साथ अकूत सम्पदा प्राप्त हुई।
अनंत सागर
प्रेरणा
बयालीसवां भाग
18 फरवरी 2021, गुरुवार, बांसवाड़ा
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