जिसका जीवन व्यवस्थित हो वही मनुष्य जीवन में सफलता को प्राप्त करता हुआ परमात्मा पद को प्राप्त होता है। हम जिन महापुरुषों की बात करते हैं। चाहे वह भगवान आदिनाथ, भगवान महावीर, भगवान राम हो या महात्मा गांधी सब ने अपने जीवन में सफलता चारित्र (आचरण) आधार पर ही प्राप्त की है। आचरण से मतलब है कि गृहस्थ का मन, वचन, विचार, बैठना, उठना, चलना, बोलना, खाना, पहनना आदि को मर्यादित अर्थात पवित्र, निर्मल करना, अशुभ कर्मों से बचने के लिए। ध्यान की स्थिरता के लिए बिना प्रयोजन जीव के घात से बचने के लिए। गृहस्थ के लिए तीर्थकर ने जो उपदेश दिया है, उस उपदेश को चारित्र (आचरण) कहते हैं और उसे सहजता से समझने की दृष्टि से 12 भागों में विभाजन किया गया है।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में गृहस्थ के चारित्र भेद बताते हुए कहा है कि
गृहिणां त्रेधा तिष्ठत्यणु गुण-शिक्षाव्रतात्मकं चरणम् । पञ्चत्रिचतुर्भेदं त्रयं यथासंख्य-माख्यातम् ॥51॥
अर्थात- गृहस्थों का जो विकलचारित्र है वह अणुव्रत, गुण व्रत और शिक्षाव्रत रूप होता हुआ तीन प्रकार का है। तीनों में प्रत्येक क्रम से पाँच, तीन और चार भेदों से सहित कहा गया है। अर्थात् अणुव्रत पाँच प्रकार का, गुणव्रत तीन प्रकार का और शिक्षाव्रत चार प्रकार का है। अणुव्रत के पाँच भेद हैं- 1. अहिंसाणुव्रत, 2. सत्याणुव्रत, 3. अचौर्य अणुव्रत, 4. ब्रह्मचर्या, 5. परिग्रहपरिमाणाणुव्रत
गुणव्रत के तीन भेद हैं- 1. दिग्वत, 2. अनर्थदण्डवत और 3. भोगोपभोगपरिमाणव्रत । शिक्षाव्रत के चार भेद हैं- 1. देशावकाशिक, 2. सामायिक 3. प्रोषधोपवास 4. वैयावृत्य। इन बारह प्रकार के विकलचारित्र में पाँच अणुव्रतों को व्रत और शेष सात को शील कहते हैं।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 57 वां दिन)
शनिवार, 26 फरवरी 2022, घाटोल
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