जो अपना नहीं हो उसमें मूर्च्छा- ममत्व रखना, आवश्कता से अधिक का संग्रह करना, परिवार को चलाने के लिए जितना चाहिए उससे ज्यादा रखना परिग्रह है । परिग्रह मात्र धन आदि नहीं, बल्कि कषायों का भी होता है।मान, माया लोभ से भी तो धन आदि संग्रह करने का भाव होता ही है और कषाय तो अपनी आत्मा का स्वभाव नहीं है । किसी के पास एक रुपया नहीं हो वह 1 लाख की इच्छा रखे तो यह भी परिग्रह है और किसी के पास 1 लाख है पर उसके प्रति मूर्च्छा का भाव नहीं है तो वह उसके लिए परिग्रह नहीं है। परिग्रह से मूर्च्छा भाव दूर करने के लिए परिमित परिग्रह अणुव्रत होता है ।
मनुष्य बढ़ती हुई इच्छाओं के कारण परिग्रह का संचय करता है। अतः अपनी इच्छाओं का परिमाण करना आवश्यक है। परिमाण किये हुए परिग्रह से अधिक परिग्रह में किसी प्रकार की वाँछा नहीं रखना, इस व्रत की विशेषता है।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में परिमित परिग्रह अणुव्रत का स्वरूप बताते हुए कहा है कि …
धनधान्यादिग्रन्थं, परिमाय ततोऽधिकेषु निःस्पृहता। परिमितपरिग्रहः स्यादिच्छापरिमाणनामापि ॥61॥
अर्थात- धन-धान्यादि परिग्रहों को सीमित कर उनसे अधिक परिग्रहों में इच्छा रहित होना परिमित परिग्रह अथवा इच्छा परिमाण नामक अणुव्रत होता है।
गाय, भैंस आदि को धन कहते हैं। धान्य, गेहूँ, चना आदि को धान्य कहते हैं। आदि शब्द से दासी दास, स्त्री-मकान, खेत, नकद द्रव्य, सोना-चाँदी के आभूषण तथा वस्त्र आदि का संग्रह होता है। यही सब परिग्रह कहलाता है। अपनी इच्छानुसार देव तथा गुरु के पादमूल में इसका परिमाण कर उससे अधिक में इच्छा रहित होना परिमित परिग्रह नाम का अणुव्रत है। इसका इसमें परिमाण किया जाता है। इस अणुव्रत में अपनी इच्छाओं को परिमित सीमित किया जाता है, इसलिये इसका दूसरा नाम इच्छापरिमाणव्रत भी है। इस अणुव्रत में अपनी इच्छा का परिमाण किया जाता है, इसलिए इसका दूसरा नाम इच्छा परिमाण भी है। परिग्रहत्याग महाव्रत में इन सभी परिग्रहों का त्याग रहता है। परन्तु गृहस्थ परिग्रह का पूर्ण त्याग नहीं कर सकता। वह अपनी आवश्यकता के अनुसार उसकी सीमा निश्चित कर सकता है, इसलिये गृहस्थों के लिए परिग्रह परिमाण अणुव्रत धारण करने का उपदेश दिया गया है।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 67 वां दिन)
मंगलवार, 8 मार्च 2022, घाटोल
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