राम और रावण का युद्ध होना था। उसके एक दिन पहले रावण और उसकी धर्म पत्नी मन्दोदरी की आपस में इस बात को लेकर चर्चा हुई कि रावण सीता को छोड़ दे। इस चर्चा का वर्णन पद्मपुराण के पर्व 73 में आया है। इस चर्चा से लगता है कि कर्म सिद्धान्त कैसे एक बुद्धिशाली, विवेकी, धर्मात्मा को हठी बालक बना देता है जो बात को समझ तो जाता है लेकिन कुछ क्षण बाद फिर अपनी हठ पर आ जाता है।
तो आओ पढ़ते हैं यह चर्चा
मंदोदरी रावण से कहती है कि विवेक के साथ काम कीजिए। आपकी उत्कृष्ट धीरता, गंभीरता और विचार शक्ति उस सीता के लिए कुमार्ग पर चली गई है। लगता है कि आपको कोई कुमार्ग पर ले जा रहा है, इसलिए आप सीता को शीघ्र छोड़ दो। वीर पुरुष एक दूसरे का विरोध धन के लिए या इसलिए करते हैं कि दूसरे के कारण उनका कोई अपना मरण को प्राप्त हो जाता है, जबकि आप के पास तो दोनों ही कारण नहीं है। न आप के पास धन की कमी है और न राम ने अपने किसी परिजन को मारा है। पराई स्त्री के लिए मरना या मारना तो हंसी का काम है। पराई स्त्री के कारण गौरव को प्राप्त व्यक्ति भी तुच्छता को प्राप्त हो जाता है। वज्रघोष आदि कितने ही राजा पराई स्त्री की इच्छा मात्र से नाश को प्राप्त हुए हैं।
इतना सुनने के बाद रावण बोला, मैं न तो वज्रघोष हूं और न ही अर्ककीर्ति हूं। मैं शत्रु रूपी वन को दावानल बनकर भस्म कर दूंगा लेकिन सीता को नहीं लौटाऊंगा। मंदोदरी बोली है ना तो सीता मुझ से सुंदर है और ना ही वह विक्रिया से अनेक प्रकार के सुंदर रूप बना सकती है। फिर क्यों उस पर मोहकर अपवाद का कारण बन रहे हो। तुम मुझ जैसी वैदूर्यमणि को छोड़कर कांच की इच्छा कर रहे हो। मंदोदरी के इतना कहने पर रावण बोला तुमने मुझे परस्त्री सेवी कहा सो सही कहा। देखो यह मैंने क्या किया। परस्त्री से मन लगाकर परम अपकीर्ति को प्राप्त हुआ हूं। मेरे इस ह्रदय को धिक्कार है जो विषयरूपी मांस में आसक्त है, पाप का कारण है और चंचल है। यह मेरी नीच चेष्टा है। मंदोदरी रावण से कहती है आप और विद्वानों से चर्चा कर लें। मैं तो अबला होने के कारण कुछ समझती नहीं हूं। मन्दोदरी कहती है आपकी आज्ञा हो तो मैं सीता को राम के पास छोड़ आती हूं और इंद्रजीत, मेघवाहन, कुम्भकर्ण को वापस लेकर आती हूं। युद्ध से होने वाली हिंसा से क्या प्रयोजन।
देखो कर्म का खेल….मन्दोदरी के ऐसा कहते ही रावण फिर बोला तुम अपने आपको पंडित समझती हो जो शत्रु पक्ष की प्रशंसा कर रही हो। मन्दोदरी फिर रावण को कहती है कि नारायण प्रतिनारायण के द्वारा मारा जाता है। लक्ष्मण नारायण है और तुम प्रतिनारायण…. तो क्यों मरण को प्राप्त होना चाहते हो। इस लोकापवाद को छोड़ो। बिना कारण क्यों अपयश को प्राप्त होना चाहते हो, लेकिन रावण समझता नहीं है और कहता है इस संसार मे मेरे से बढ़कर दूसरा मनुष्य नहीं है। कौन नारायण?
तो देखा आप ने कर्म का खेल कि कैसे क्षण प्रतिक्षण भाव बदलते हैं। इसलिए हर क्षण सकारात्म सोच रखनी चाहिए।
अनंत सागर
कर्म सिद्धांत
उनंचासवां भाग
6 अप्रेल 2021, मंगलवार, भीलूड़ा (राजस्थान)
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