रावण के दाह संस्कार के बाद विभीषण में अपने कुल के बड़े बुजुर्ग सुमाली, माल्यवान तथा रत्नश्रवा आदि परिवार के लोगों को दु:खी देखकर उन्हें कर्म सिद्धांत के अनुसार सांत्वना दी। आप जानते हैं कैसे सांत्वना दी –
विभीषण ने कहा, ‘कर्मों का फल तो सबको भोगना होता है। इसमें में शोक करना व्यर्थ है, आत्महित में आपने आप को लगाना चाहिए। आप सब तो धर्म के जानकार हो, बड़े हृदय वाले हो, ज्ञानी पुरुष हो, आप तो जानते ही हो, जिसका जन्म हुआ है, उसका मरण अवश्य होगा। मनुष्य का यौवन फूल के समान सुंदर है, लक्ष्मी पल्लव की शोभा के समान है, जीवन बिजली के समान अनित्य है। बंधु जन जल के बबूल के समान हैं, भोग संध्या की लाली के समान है और क्रियाएं स्वप्न की क्रियाओं के समान हैं। अगर मनुष्य मृत्यु को प्राप्त नहीं होता है, तो रावण का जन्म हमारे गोत्र में कैसे होता? जब एक दिन हम भी मरण को प्राप्त होने वाले हैं, तो फिर शोक कर क्यों मूर्खता कर रहे है? संसार में सब नष्ट होने वाला है, इस प्रकार संसार के स्वभाव का ध्यान करना धर्मात्मा मनुष्य के शोक को क्षण मात्र में नष्ट करने के लिए पर्याप्त है। इस अनादि संसार में भ्रमण करते-करते मेरे कौन-कौन लोग बंधु नहीं हुए हैं, ऐसा विचार कर शोक को छिपाना चाहिए। इसलिए संसार को नष्ट करनेवाले श्री जिनेन्द्रदेव के शासन में यथाशक्ति मन लगाकर आत्मा को आत्म के हित में लगाइए।’
इस प्रकार हृदय को लगने वाले कर्म सिद्धांत के वचन से सबको काम में लगाकर विभीषण भी चले गए।
अनंत सागर
कर्म सिद्धांत (त्रेपनवां भाग )
4 मई 2021, मंगलवार
भीलूड़ा (राज.)
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