एक नांव में बीस व्यक्ति सफर तय कर रहे थे। अचानक तेज हवा चलने लगी। फिर अंधी शुरू हो गई। नांव हिलने लगी। नाव का कंपन इतना तेज हो गया कि उसपर बैठे बीस व्यक्ति नदी में जा गिरी। उनमें से 15 व्यक्ति की नदी में डूबने से मृत्यु हो गई। पांच व्यक्ति किसी तरह किनारे पहुंच गए। पांच में से तीन अस्पताल में इलाज के दौरान मर गए। उनमें से दो व्यक्ति ही स्वस्थ हो पाए। अब आप ही बताएं कि नांव में बैठे बीस व्यक्ति में से 15 को क्या नांव ने मारा? नदी ने मारा? हवा ने मारा या फिर अंधी के कारण उनकी मृत्यु हुई? अन्य तीन व्यक्ति जो अस्पताल में मरे, उन्हें किसने मारा? क्या डॉक्टर की वजह से उनकी मौत हुई? या वही पानी आदि उनकी मौत का कारण बने?
आप सबका एक ही जवाब होगा। उन 18 लोगों को उनके अपने कर्म ने मारा। दो लोग जो बच गए, वे अपने कर्म से बच गए। यह भी सत्य है कि 20 के 20 व्यक्ति ने उस समय भगवान का स्मरण किया होगा, तो क्या भगवान ने पक्षपात किया? अगर पक्षपात किया तो भगवान हो नहीं सकते। यह सिद्धांत है कि भगवान कुछ नहीं करता है। सही तो यह है कि भगवान मात्र पूण्य अर्जन का माध्यम है। जिसके माध्यम से हम अच्छे कर्म करते हैं। भगवान न तो किसी का अच्छा करता है, न बुरा। जैसे दर्पण में हम अपना चेहरा देखते हैं, वह चेहरा जैसा होता है, वैसा ही दिखाई देता है। इसमें दर्पण कुछ नहीं करता। वह तो एक माध्यम है। वैसे ही भगवान की मूर्ति और उनके द्वारा किए गए कर्मों का स्मरण पूण्य अर्जन का साधन है। इसका मतलब हुआ कि भगवान के सामने प्रार्थना भी उसकी ही स्वीकार होती है, जिसका कर्म अच्छा हो। कोर्ट में गवाही भी उसकी मान्य है, जिस पर बुरे कर्मों की छाप नहीं लगी हो। अच्छे कर्म का मतलब अपनी संस्कृति, संस्कार, मनावता का संरक्षण है। सच्चे मन और वचन के साथ कार्य करने का संकल्प लेकर अपने जीवन की दिनचर्या वैसी ही बना लें, तभी अच्छे कर्म होंगे। तन-मन-वचन पवित्र होगा। तभी तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार होगी। तुम स्वयं को बुरे कर्मों से बचा पाओगे।
अनंत सागर
22 सितम्बर, 2020, मंगलवार, लोहारिया
कर्म सिद्धांत
(इक्कीसवां भाग)
22
Sep
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