हमारे सुख-दुख का कारण हम स्वयं हैं। हम जैसा करेंगे उसका वैसा ही फल हमारे पास वापस आएगा, तो फिर क्यों हम भूत और भविष्य का विचार करते हैं। हमें वर्तमान के कर्मो पर ध्यान देना चाहिए। जिसे भी देखें प्रेम से देखें, जिससे बोलें मीठा बोलें, जो भी सोचें अच्छा सोचें, जो भी करें अच्छा करें। जो जीवन में हो रहा है उसे सहजता से लें और उसी में खुश रहें, तभी हम अपने अंदर की मानवता को जाग्रत रख कर सकारात्मक सोच से काम कर सकते हैं।
राम ने अपने जीवन में होने वाले सभी घटनाओं को सहजता से लिया तो वह हम सब के आर्दश बन गए। आप देखिए कि राम उसी जीवन से भगवान बनने वाले थे फिर भी उन्हें वनवास जाना पड़ा। उन्होंने उस वनवास को भी सकारात्मक सोच के साथ सहजता से स्वीकार किया। जब दशरथ ने राम से कहा बेटा मैंने कैकयी को वचन दिया था कि वह जो मांगेगी वह उसे दूँगा और आज कैकयी ने राज्य का राजा भरत को बनाने और तुम्हें वनवास भेजने की मांग की है। तुम ही बताओ मैं बड़े भाई के होते कैसे भरत को राजा बना सकता हूं। यह कार्य लोक व्यवहार में कतई उचित नहीं है। भरत को राज्य नही देता हूं तो राजा का वचन भंग होगा और देता हूं तो लोक व्यवहार में उचित नही होगा….. मैं क्या करूँ ? तब राम ने सहजता और सकारात्मक सोच के साथ पिता के वचन को निभाने के लिए वनवास जाना स्वीकार कर लिया। अपने कर्मो से वह वन में भी राजा बनकर रहे। वनवास के दौरान गमन करते समय जो भी दुःखी, पीड़ित दिखाई दिया उसकी मदद की और प्रजा के दिल में राज करते हुए वनवास पूरा किया।
तो….. यह क्या है सब कर्मो का ही चक्कर है। वनवास भी गए और जहां भी रहे वहाँ पर दिलो में राज कर ही करते रहे। आज तो वह परमात्मा बनकर हमारे दिलों में बसे हैं क्योंकि उन्होंने सहजता और सकारात्म सोच से जीवन को जिया।
05
Jan
Give a Reply