धर्म के अनुसार समाज की वर्तमान परिस्थिति को देखकर लगता है कि अब महिलाओं को अपने आप को बदलने और स्वयं के स्वरूप को जानने की आवश्यकता है। जैन दर्शन और भारतीय संस्कृति में कहा गया है कि समाज व परिवार का संचालन और सुरक्षा महिलाओं के बिना संभव नही है। भगवान आदिनाथ ने अपनी पुत्रियों ब्राह्मी-सुंदरी को अक्षर-अंक विद्या देकर यह स्पष्ट कर दिया था कि महिलाओं का सामाजिक और धार्मिक स्तर पर कितना महत्व है।
भारतीय संस्कृति में कहा गया है कि जिस घर में महिला ना हो वह घर घर नही है वह तो आश्रम है। धार्मिक और सामाजिक रीति रिवाज बिना महिला के पूर्ण नहीं होते हैं। धार्मिक अनुष्ठान में पुरुष के साथ उसकी पत्नी का होना आवश्यक है। मांगलिक कार्यक्रम में कुंवारी कन्या की आवश्यकता होतीं है और भी कई धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रम हैं जहां पर महिलाओं के बिना अनुष्ठान अधूरा रहता है।
अर्थात यह स्पष्ट है कि समाज और परिवार में महिलाओं की कितनी आवश्यकता है। इससे यह भी स्पष्ट है कि भारतीय संस्कृति में महिलाओं को कितना पवित्र और निर्मल माना गया है। भारतीय संस्कृति और जैन दर्शन में जब धार्मिक व सामाजिक स्तर पर महिलाओं को जब इतना पवित्र माना गया है तो फिर महिलाओं को भी अपने तन, मन और वचन को उतना ही पवित्र रखना चाहिए। इसके लिए उन्हें अपने खान-पान, रहन-सहन, पहनावे, बोल-चाल आदि पर विचार करना चाहिए और यह ध्यान रखना चाहिए कि इनका स्तर गिर तो नहीं रहा है।
अनंत सागर
अंतर्मुखी के दिल की बात
उनचासवां भाग
08 मार्च 2021, सोमवार, भीलूड़ा (राजस्थान)
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