मुनि पूज्य सागर की डायरी से
मौन साधना का 46वां दिन। कहना आसान है, पर करना मुश्किल। सुनना अच्छा है, पर अनसुना करना मुश्किल। देखना आसान है, अनदेखा करना मुश्किल और उपदेश देना आसान है, पर उसकी पालन करना मुश्किल है। इन्हीं के कारण व्यक्ति दोहरा जीवन जी रहा है। ऐसे व्यक्ति जिंदगीभर असमंजस में रहते हैं। ऐसे व्यक्ति को खुद का ही पता नहीं होता है कि वह क्या कर रहा है। ऐसे व्यक्ति परिणाम के बारे में भी नहीं सोचते। इसी वजह से ऐसे व्यक्ति कभी भी जीवन में सही निर्णय नहीं ले पाते हैं और कभी भी अपनी बात पर अडिग भी नहीं रह सकते हैं। वह समय-समय पर अपनी बात से पलट जाते हैं। दोहरा जीवन जीने वाला व्यक्ति सदैव जीवन के फैसले डर और स्वार्थ से लेता है। स्वार्थ और डर से लिए गए फैसले समाज, परिवार और अपने आप में कभी भी न तो शांति ला सकते हैं और न ही समृद्धि को प्राप्त करा सकते हैं। खुद के मन की आवाज सुनने वाला व्यक्ति ही दोहरे जीवन से निकल सकता है। वह अपनी पहचान बनाता है और न्याय करने की क्षमता भी रखता है। खुद के भीतर की आवाज भेदभाव रहित और खुद के लक्ष्य को पूरा करने वाली होती है। सुनी- सुनाई बातों पर यकीन करने वाले व्यक्ति अपने लक्ष्य से भी भटक जाते हैं।
मन और मस्तिष्क कई प्रश्न स्वयं खड़े करता है और खुद ही एक-एक प्रश्न के अनेक उत्तर निकालता है। ऐसे व्यक्ति कभी भी अपनी सोच से नहीं, बल्कि दूसरों की सोच से काम करते हैं। ऐसे व्यक्ति कभी भी न तो धार्मिक, न सामाजिक, न पारिवारिक, न राजनीति और न ही लौकिक कार्य में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। न ही वह समाज को कोई अपना मशिवरा दे सकते हैं। दूसरों के विचारों और रास्ते पर चलने वाला व्यक्ति खुद के मन और मस्तिष्क को कचरा पात्र के समान बना लेता है। ऐसे व्यक्ति समाज और परिवार में सकारात्मक सोच भी पैदा नहीं कर सकते और न ही परिवार और समाज के विकास में भागीदार बन सकते हैं।
रविवार, 19 सितम्बर, 2021 भीलूड़ा
Give a Reply