भीलूड़ा/सागवाड़ा, 4 मार्च – अन्तर्मुखी मुनि पूज्यसागर महाराज ने श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि मन को राम बनाना है या रावण यह तय तुम्हें करना है। जिन्होंने अपने मन को राम बनाया उनके पास कुछ भी नही होते हुए भी सब कुछ हो जाता है और जिसने अपने मन को रावण बना लिया है उनके पास सब कुछ होते हुए भी सब चला जाता है।
मुनिश्री ने कहा कि रामायण में सब ने देखा है कि राम जब अयोध्या से वन की ओर निकले तो कुछ नही था, पर मां-पिता के प्रति विनय, आदर, कर्त्तव्य का भाव था और परिवार, प्रजा के प्रति प्रेम ,स्नेह था। जब जंगल में विहार कर रहे थे तो कई दुःखी राजाओं का सहयोग कर उन राजाओं को अपना बना लिया। राम के पास कुछ नही होते हुए भी सब कुछ था। राम दया, करुणा, सहयोग से सबको अपना बनाते गए। मन और विचार की निर्मलता के कारण राम का जंगल मे भी मंगल हुआ।
उन्होंने कहा कि युद्ध में रावण मारा गया उस समय भी राम ने विधिविधान के साथ रावण के शरीर का कपार, चन्दन, धूप आदि से अंतिम संस्कार किया और राम ने कहा कि बुद्धिमान व्यक्तियों का वैर मरण तक ही होता है। रावण में पक्ष में युद्ध कर रहे राजाओं को भी बंधन से मुक्त कर दिया। यह है मन और विचार की पवित्रता।
इधर रावण के पास धन, वैभव, नाम, शक्ति, भक्ति सब था पर उसने सीता के प्रतिवासना का भाव बना जिससे मन और विचार अपवित्र हो गए और सब कुछ होते हुए भी धीरे-धीरे सब दूर होता गया। यहाँ तक कि भाई विभीषण भी साथ छोड़ गया।
मुनिश्री ने कहा कि इस प्रसंग से आप सब को प्रेरणा लेनी चाहिए कि घर में छोटी-छोटी बातों के कारण हम उस पत्नी से जिसके साथ जीवनभर रहने की कसम खाई थी ,जिस माँ ने आपको 9 महीने तक पेट मे रखा, उस भाई या बहन जिसके साथ खेलकर बड़े हुए उन सब के साथ झगड़ाकर मन और विचार खराब कर लेते हैं। तुम सोचना कि क्या तुम अपनों को दुःखी कर खुश रह पाओगे। भाई-भाई आपस में जमीन के लिए लड़ रहे है और जितने की जमीन नहीं उससे अधिक जमीन का केस लड़ने में पैसा लग जाता है, फिर भी हम समझ नही पाते कि हम क्या कर रहे हैं। सच तो यह कि यह सब मन, विचार आदि की अपवित्रता के कारण हो रहा है। मन, विचार रावण बन गए हैं। अगर सुखी, सम्पन्न होना चाहते हो तो मन, विचार को राम बनाएं सारा संसार तुम्हारा हो जाएगा।
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