पर्युषण पर्व विशेष – पांचवां दिन – उत्तम सत्य धर्म
दशलक्षण धर्म के पांचवें कदम यानि उत्तम सत्य धर्म को बीज धर्म के समान माना गया है। इसे कुछ यूं समझें कि बीज अच्छा हो, जमीन उपजाऊ हो तो फसल स्वतः ही अच्छी होगी। परंतु बीज, अच्छा हो पर जमीन उपजाऊ न हो तो फसल कभी भी अच्छी नही हो सकती। मानव जीवन में क्रोध, मान, माया, लोभ, कषाय, मद व मोह जमीन के समान है और सत्य बीज है। कषाय के साथ, राग, द्वेष, इर्ष्या, लोभ, डर और बदले की भावना से बोला हुआ सत्य भी असत्य है क्योंकि उद्देश्य गलत है। धर्मलाभ, आत्मकल्याण, दूसरों का अच्छा हो इस भाव से बोला असत्य भी सत्य है क्योंकि उदेश्य बेहतरीन है। वास्तव में मन, वचन, काय की क्रिया का बंद होना ही उत्तम सत्य धर्म है। इसी अवस्था में व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप में आता है। स्वयं की पहचान ही वास्तव में उत्तम सत्य धर्म है। इस अवस्था में आत्मा कर्मों से रहित होती है। मौन कर्मों से रहित अवस्था का नाम है। वही बोलना कर्मों से सहित अवस्था है। बोलता वही है जिसके पास ज्ञान कम हो, जिसके पास ज्ञान होता है वह तो मौन हो जाता है, क्योंकि वह जानता है कि जो दिखाई दे रहा वह उसका है ही नही। जो मेरा है वह मौन से मिल सकता है। इसलिए सत्य को पाने के लिए मौन हो जाओ। मौन ही जीवन का आधार है।
आज का जाप-
ऊँ ह्रीं उत्तम सत्यधर्मांगाय नम:
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