प्रथमानुयोग के ग्रन्थ में जिनेन्द्र दर्शन, पूजन का महत्व बताने वाली एक कथा आती है। उस कथा का सारांश यही है कि जिनेन्द्र भगवान की पूजन और दर्शन ही संसार में श्रेष्ठ है। कथा कुछ इस प्रकार है –
राजगृह नगर के राजा श्रेणिक भगवान महावीर के समवसरण में गाजे-बाजे के साथ अपनी सेना और प्रजा के साथ दर्शन जा रहे हैं। गाजे-बाजे की आवाज सुनकर पूर्व पुण्य कर्म के उदय से तिर्यंच जाति के मेंढ़क को भगवान महावीर के दर्शन, पूजन का मन हुआ और दर्शन, पूजन के लिए तालाब से निकलते समय वह अपने मुख में कमल की पंखुड़ी दबाकर समवसरण की और श्रद्धा, उत्साह से चल पड़ा। रास्ते मे वह राजा श्रेणिक के हाथी के पैर के नीचे आकर मर गया।
लेकिन मरण के समय उसके मन में जिनेन्द्र देव के दर्शन के भाव थे, इसके प्रभाव से वह मरकर देव हुआ और उसे राजा श्रेणिक से पहले भगवान महावीर के समवसरण में जाकर उनके दर्शन, पूजन का अवसर मिला।
तो आप ने देखा कैसे एक तिर्यंच जाति का मेंढ़क देव बना। हम सब को इस कथा से जिनेन्द्र भगवान के दर्शन, पूजन का महत्व समझकर भगवान के दर्शन, पूजन का संकल्प करना चाहिए।
अनंत सागर
कहानी
अडतीसवां भाग
17 जनवरी 2021, रविवार, बांसबाड़ा
Give a Reply